अनकहा

anakha

पंकज प्रखर

और अधिकपंकज प्रखर

    अगर खोदकर देखो तो

    एक के ऊपर एक

    चिपकी हुई परतें दिखाई पड़ेंगी

    पर इस सड़क की ज्यामितीय संरचनाएँ

    तुम्हें कभी नहीं बताएँगी

    आबला-पाई के क़िस्से।

    पत्थरों के टुकड़े यह नहीं बताएँगे

    कि कभी यहाँ धान का खेत भी हुआ करता था।

    यह विशाल पुल जो खड़ा है

    इस नदी की छाती पर

    इसकी मेहराबें यह नहीं बताएँगी

    कि आख़िरी बार कब इसकी लहरें

    आसमाँ छूने को मचली थीं।

    ये किनारे तुम्हें कभी नहीं बताएँगे

    कि मनुष्य ने अपनी आख़िरी यात्रा

    यहीं पूर्ण की थी।

    ये मुआवज़े वाला रजिस्टर लिए बैठा है जो बाबू

    वह मुआवज़े की तारीख़ कभी नहीं बताएगा।

    उसकी पीली फ़ाइलों में दफ़्न दस्तावेज़ चुप हैं,

    ज़बान को लकवा मार गया हो जैसे।

    लेकिन वह जो सड़क किनारे

    पगडंडियों पर चल रहा है

    उससे पूछो...

    उसकी चमकती आँखें बताएँगी

    कि इन्हीं पगडंडियों पर

    चलने वालों की छाती पर बना है

    यह राजमार्ग।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज प्रखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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