स्वप्नभंग
आयलि छलीह ओ
राति मे
स्वरूप तँ नै देखल
मुदा, स्वर सूनल।
कहैत रहथि
कोना मंगैत छी सहजहि!
छै सहज, जे भेटि जेतै सहज?
की भेटै छै आइ-काल्हि सहज?
सहज तँ ब'रो नै भेटै छै
आ, अहाँ वर मंगै छी
सेहो सुमति लेल!
असम्भव, असम्भव
हम हारि गेल छी
मैथिल सँ।
मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना
हम बड़ा त' हम बड़ा
अपना-अपनी मे मगन
भिन्न भिन्न बथान
आ, बुझत उत्कीर्णा
कहू, हेतै कोना!
लागल आघात
सूनि ई बात
बिजलौका छिटकि गेल
मेघक दहाड़ सँ
निन्न टुटि गेल।
फोलल के बार
भेलौं बहार
देखल पाथरक पथार
जखन मज्जरे झड़ि गेल
फुटितए कोना बकार।
तथापि मोनेमोन गोहरौल
हे भगबत्ती!
नहिं कटैत छी बात
मुदा एना नै क' दियौ एकात
मिथिला पर
नहि हो बज्रपात।
- पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 37)
- रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
- प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
- संस्करण : 2021
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