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नमहर हो चद्दरि जतबए

अमरनाथ झा ‘अमर’

अन्य

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अमरनाथ झा ‘अमर’

नमहर हो चद्दरि जतबए

अमरनाथ झा ‘अमर’

और अधिकअमरनाथ झा ‘अमर’

    लोभे लोभबय लोक कँ, संवरणहु ने शेष

    एकर फेर मे जे पड़य, संकट सदा अशेष।

    लोभे क्षोभक वरण हो, जै सँ बढ़ै उताप

    कारक नाशक बनय, लोभे जड़ि थिक पाप।

    असंतोष थिक मूल जे, मरबा दैछ बिचार

    सोनक कंगन लोभवश, पथिक बाघ आहार।

    कनक हरिन के चाह, जे, नहिं भेटय ब्रह्मांड

    सीता-हर कारण बनल, भs गेल लंकाकांड।

    अधिक लोभके कारणँ, काँकोड़ गिड़लक बक

    प्राणहु संकट मे पड़ल, चलल कोनो अकबक?

    अगम पानि के लोभ मे, माछ लगैछ उजाहि

    फँसि टहुकी रहि जाइ छै, काटय लागइ काहि।

    जे किछु भेटल ईश सँ, ओही मे संतुष्ट

    अहगर पएबाक आस मे, मोन होइ नै रुष्ट।

    संतोखे थिक सुख परम, अधिलोभक ने आस

    नमहर हो चद्दरि जते, ततबए मे हो बास।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
    • प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
    • संस्करण : 2021

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