जखन खिड़कीक दोगसँ रिस-रिसकऽ अबैत इजोत
सेहो भऽ जाइत अछि बनौआ/ठकहरा
तँ ठीके कहैत छी समाङ
एहि चारूकातक ठाढ़ देबाल/एकर जमकल सान्निध्य
लागऽ लगैत अछि
पहर भरि राति उठला उत्तर
आँगनक मुहथरि परसँ
कुकूरक उठैत हाक जकाँ भयावह
आ तखन
अन्हरिया ड्यूटीक कोनो सिपाही जकाँ
एहि देबालक औचित्यपर तर्जनी भऽ उठैत अछि ठाढ़
समाङ, हम ई बुझैत छी जे
प्रत्येक लड़ाइ एकटा नब सीख दैत छै
लड़ाइक प्रत्येक समाप्ति
नब ढंगसँ विचारबा लेल विवश करैत छै
मुदा
एकटा बात बुझियोकऽ नहि बुझाइत अछि
जे मनुक्ख किये ने कऽ पबैत अछि भेद
झहरैत सिंगरहार आ लटकैत हंसलतामे
मनुक्ख मात्र सोच सभपर ओंगठिकऽ
अपनाकेँ पतिया रहल अछि
कोनो एकटा 'सोच' पर ठाढ़ होबऽमे
पछुआ रहल अछि।
एतऽ तँ समाङ
हमरालोकनि मात्र गप्प टा करैत छी
ओ गप्प गांधीसँ मार्क्सधरि भऽ सकैछ
गीतासँ कुरानधरि भऽ सकैछ
भारतसँ लऽकऽ रूस-चीन-अमरीकाधरि भऽ सकैछ
मुदा करैत किछु नहि छी
हमर सरकार मुदा लागल छथि
एकटा बरफक संसार बनयबामे
संग्रहालय, शोध-संस्थान, प्रवचन, शिविर...क
आयोजन करबाबैत छथि
कऽल जोड़ने ठाढ़ बाबा गांधीक मुरुतमे
नब-नब फ्रेम लगबाबैत छथि हमर सरकार
किये तँ ई जनैत छथि
जे, सादा कागजगर छाप बड़ फरिच्छ भऽ उगैत छै
जे, ओ जल्दी उखरैत नहि छै
तेँ
एहि विस्तृत सहनि केर पसरल आकृतिपर
दमगर आलेख आ आवाज बिलहल जाइत छै
एखनोधरि ओही पीचपर व्यवस्थाक गाड़ी ससरैत छै
आ से
धुकधुकीक गीरह फुजबा धरि ससरैत रहतै।
एम्हर ताबत
नब-नब वचन बिलहल जाइत रहत
वचनामृतक प्रकाशनक अम्बार लगत रहत
हम...अहाँ...सभ प्यालीक चाह बनैत रहब
पील जाइत रहब कोनो अधिवेशन/कोनो पार्टी
कोनो इजलास/कोनो मुखियाक हाथसँ
तेँ समाङ हमर
आउ, करी एक आसनसँ
बात-विचारक आरम्भ
आउ, उठाबी एकदीससँ अपन-अपन तनल हाथ
समाङ यौ!
बाइस्कोपक मुरुत जकाँ
रंग-बिरंगी रूप झलकैत तँ लगैत अछि नीक
इन्द्रधनुषी रंगक पोतसँ
देबालक रंग बदलाइत तँ लगैत अछि नीक
मुदा रहि-रहिकऽ एकटा बात कचोटैत अछि
ई देबाल किये ने बदलैत अछि?
- पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 7)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
- संस्करण : 1984
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