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अकविता प्रति : कविताक उक्ति

akvita prati ha kavitak ukti

हरिमोहन झा

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हरिमोहन झा

अकविता प्रति : कविताक उक्ति

हरिमोहन झा

और अधिकहरिमोहन झा

    हम बहुत दिन रस पिआओल, आबऽहाँ नीरा पियाउ

    रसमलाइ हम खोआओल, आबऽहाँ सोडा पियाउ।

    छन्द केर लय ताल पर हम नृत्य नित देखबैत ऐलौं,

    आबऽहाँ स्वच्छन्द भय बेताल निज तांडव देखाउ।

    स्वर्ण हीरक मणि अलंकारक छटा हम दैत ऐलौं,

    अहाँ चकमक काच लय कऽ हार निज चमका देखाउ।

    रेशमी साड़ी हमर परिधान मर्यादित रहल अछि,

    अहाँ प्लैस्टिक केर जँघियामे अपन जौहर देखाउ।

    हमर चोटी आलुलायित कटिक नीचा मे खसै अछि,

    अहाँ नकली केश सँ गर्वोच्च तिनमहला उठाउ।

    रस कलश सन हमर यौवन क्षीर सँ छलछल कर अछि,

    रबड केर खप्पा लगा नकली अहाँ प्याला बनाउ।

    जाहि सँ किछु अमृत दूहब बड़द केँ दूहब जकाँ अछि।

    टॉप केँ उनटा अहाँ टौपलेस फैशन चलाउ!

    हमर श्रीफल और दाड़िम केर प्रतीक पुरान यदि तँ

    अहाँ बड़हर और कटहर केर नव उपमा चलाउ।

    चन्द्रमा कमल कोकिल हंस सौं हम नेह राखल,

    अहाँ आब धथूर और अकौन सौं उपवन सजाउ।

    लक्षणा व्यञ्जना सौं हम रसिककेँ मुग्ध कैलौं,

    अहाँ अविधो लुप्त कय, धारा अनर्थमयी बहाउ।

    हमर चौरासी कला छल, पाँच बर बेसी अहाँ छी

    जाइ छी हम, आबऽहाँ निज चारि सै बीसी चलाउ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हरिमोहन झा रचनावली खण्ड-4 (पृष्ठ 78)
    • रचनाकार : हरिमोहन झा
    • प्रकाशन : जनसीदन प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

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