आजकल

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मनजीत टिवाणा

और अधिकमनजीत टिवाणा

    मेरी नज़रों में

    सिर्फ़ मेरी अनलिखी कविताएँ पढ़ सकते हैं आप

    आजकल मेरे हाथों में

    आप सूली की कीलें ठुकीं

    देख सकते हैं

    आजकल आप

    सौतेले हाथों हमारी क़ब्रों पर

    दीये जलते देख सकते हैं

    आजकल हमारी चुप्पी में

    आप समय की धूल उड़ती देख सकते हैं

    आजकर उम्मीद की आँख में आप

    सूखा उगा देख सकते हैं

    आजकल परिंदों के सहन में आप

    मेरा घर खोज सकते हैं

    आजकल सड़कों को आप

    मेरी ख़ामोशी की ओर लौटते देख सकते हैं

    आजकल आप

    मेरी मिट्टी के जायों को

    पेड़ों में परिवर्तित होते देख सकते हैं।

    आजकल आप

    हमें काले सूरज की कचहरी में

    पेशी भुगतते देख सकते हैं।

    आजकल हमारे सपनों में आप

    दूर तक मोहनजोदड़ों-हड़प्पा के खंडहर

    देख सकते हैं

    आजकल हमारे नामों में

    आप

    मौत के पते पढ़ सकते हैं

    आजकल हमारे अस्तित्व को आप

    पोर-पोर बिंधते

    देख सकते हैं

    आजकल...

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ (पृष्ठ 104)
    • रचनाकार : मनजीत टिवाणा
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1992

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