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ऐसा ही है

aisa hi hai

येव्गेनी विनोकुरोव

अन्य

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और अधिकयेव्गेनी विनोकुरोव

    बड़ी निपुणता और गूढ़ता से मुझको

    सब ने सलाह दी

    जिनसे भी था अपना परिचय

    बस मैंने इतना किया

    कि अपना शीश हिलाया—'ऐसा ही है

    तुम कहते हो ठीक...

    ठीक कहते हो पक्के मित्र पूर्णतः'

    उँगली एक उठा सख़्ती से

    पकड़ा मेरा कॉलर कसके जभी उन्होंने

    मैंने बहस उनसे कुछ की

    और कहा यह—'मैं अपार आभारी हूँ

    हाँ...जी हाँ...धन्यवाद हैं तुम्हें...अनेक

    मैं सहमत हूँ...सहमत...

    सचमुच वह प्रवीण है...

    बिना किसी शक के...

    अवश्य...मैं इस पर सोचूँगा...

    इसमें मेरा कुछ नहीं घिसा

    लेकिन आनंद उन्हें आया

    मेरे विचार को

    वे जितना अनुकूल बनाने की

    कोशिश करते थे

    उतना ही ज़्यादा मैं विनम्र बनता था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 259)
    • रचनाकार : येव्गेनी विनोकुरोव
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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