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आदिवासी

adivasi

मधु सिंह

अन्य

अन्य

मधु सिंह

आदिवासी

मधु सिंह

और अधिकमधु सिंह

    जंगल से बेदखल हो रही जाति का

    कहीं भी ज़िक्र नहीं इनके मैनिफेस्टो में

    ज़िक्र नहीं

    जंगल में बसने वाली पक्षियों और

    सैकड़ों प्रजातियों की

    ज़िक्र नहीं

    उस पुराने विशालकाय वृक्ष की

    जहाँ सभाएँ बैठती थीं

    और

    ढोलक की थाप पर थिरकते थे युगल

    जिक्र नहीं

    उन तालाबों का

    जहाँ अपने संकोच को तीरे उतार

    डूबती उतराती थी वन सुंदरियाँ

    जिक्र नहीं

    उन युवतियों का

    जो सभ्य समाज के द्वारा फेंकी गईं जाल में

    फंस मछली-सी तड़पती रहती हैं

    उन्हें फ़िक्र नहीं

    पेड़ पौधों

    घोंसलों

    चिड़ियों की चहचहाहट की

    ही

    आदिवासी परिवार के सपनों की

    यक़ीन मानिए

    विकास के नाम पर

    जंगलों का मिटा देना नामोंनिशान

    लगा देना आग

    और उनकी झुग्गियों से उठती लपटों पर

    अपने सपनों को

    पूरा होते देखना

    उनका पेशा है

    वे मिटा देना चाहते हैं

    भाषा के साथ उनकी बोली

    आधुनिक समाज की राह से

    उन्हें असभ्य और जंगली कहकर

    हटा देना चाहते हैं जंगल की अकूत संपदा से

    क्या सच में

    बहुत मुश्किल है उनके लिए

    अपने चेहरे से यह नक़ाब उतारना

    और

    इस जलती आग को बुझा देना

    ये नेता हैं

    सावधान!

    इनकी बातों में मत आना

    ये लोग कुर्सी पर बैठकर

    भूल जाते हैं जंगल वापसी का रास्ता

    क्योंकि इन दिनों बनने लगा है एक जंगल इनके भीतर

    स्रोत :
    • रचनाकार : मधु सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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