अधीत

adhit

वस्तुनिष्ठ व्यग्रता में

अपूर्णताएँ सहचर हैं

और भंगिमाएँ हमारी

पहुँच में नहीं हैं

वे चेतना में संघर्ष करते

अपनी उपस्थिति नहीं बचा पाईं

और विस्मृत कर दी गईं

मातृ-पक्ष के पूर्वजों की तरह

उन पूर्व-ऊष्माओं की भी स्मृति

जो जीवन के कषाय क्षणों में

कभी आश्वस्ति की तरह भी नहीं आईं

वह नवजात दुख छिपाते रहे

जो इश्तिहार की तरह

दैनिक स्वप्नों का हिस्सा हैं

कल्पनाएँ नींद का अतिक्रमण हैं

और एकांत की जगहें

लेने को तैयार बैठी हैं

शरणार्थी की तरह भयग्रस्त

निर्वासन का भार लिए बैठा हूँ

और निराशाएँ पाँव रख रही हैं नींद पर

अब भी अगोछ लेती हैं आशंकाएँ

पुरायठ हो चुके

किसी निजी दुख की तरह

युद्ध हारे बैठा रहा हूँ

तुमसे निर्बाध दूरी पर

अधिक दुराव

अधिक वैमनस्य की दुनिया में

मैंने लगभग छूटते जाने के क्रम में

लगभग बिखर चुकी कविताएँ सहेज ली हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : मनीष कुमार यादव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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