की, कोनो ममताक आँचरमे
नागदंशक गीत अहाँ सुनने छी?
की, कोनो भयभीत शिशुक सपनामे
पझाइत स्नेह-बन्ध देखने छी?
की, कोनो भुतही बकसाक विषसँ
मोहित कुमारि कन्याक विषाक्त
पहिल साँस सुँघने छी?
आ, कुमारि बेटीक कथा ल' जाइबला
पिता, पितामहक पागक भार थाहने छी?
पाग, जे परम्परा, धर्म, संस्कृतिक
रक्षा लेल आकुल
अहाँक पयरपर खसत
देखितहिँ द्रवित छी अहाँ
बिसरि जाउ। जाहि पागक
रक्षा लेल आकुल अहाँक मोन अछि
ओ नहि भऽ सकत, नहि भऽ सकत!
अपन सुकुमार
सुबुद्ध पुत्रक पिता।
अहाँ रक्षक छी, भक्षक नहि।
भुतही बकसाक विषसँ मोहित
विषकन्या
हमर पुत्रकेँ डँसि ने लिअय
आ सुबुद्ध, सुकुमार पुत्र
अपने घर मे भोतिआयल बटोही ने बनि जाय!
बीतल वर्षक अन्तिम रातुक
उत्सवक बोतल
शहरक ओइ भोरक
सुनसान सड़कपर
बोतलक चकनाचूर शीशाक स्मृतिमे
अहाँक शोणिते शोणिताम चरण
अपन टीस, पीड़ाके 'जीवित नहि क' दिअय
तेँ, अबैबला शताब्दीक भोरक स्वागत लेल
बोतल नहि खोलू, ने मार्गकेँ
खाली बोतलक शीशासँ
आच्छादित करू।
'अघमर्षण सूक्तस्याक' मन्त्र लेल
शक्तिसंचयक’
दिनकरक प्रतीक्षा करू
रात्रिक अन्धकारमे
योगमायाक ध्यानें सुषुप्त भ’
प्रातक स्वागत लेल उन्मुख होउ।
दिनकरक प्रथम किरण दर्शनरत नयन
'गोत्रं न्नो वर्द्धताम्'क शुभ आह्वानमे
सफल हुअय
विषाक्त शताब्दीक टूटल काँचक स्मृति
विलीन भ’
अमृत गीतक छन्दसँ
प्रात, एहि शताब्दीक
अमर हुअय।
ममताक आँचरसँ
नागदंशक चीत्कार शमित करू
शिव हो! प्रातीमे अमर गीत मुखर करू।
- पुस्तक : आगत क्षण ले (पृष्ठ 20)
- रचनाकार : नीरजा रेणु
- प्रकाशन : श्री शेखर झा
- संस्करण : 1997
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