आते रहे विचार फटे पुराने पीले पन्नों से

aate rahe vichar phate purane pile pannon se

यशस्वी पाठक

यशस्वी पाठक

आते रहे विचार फटे पुराने पीले पन्नों से

यशस्वी पाठक

और अधिकयशस्वी पाठक

    आते रहे विचार फटे पुराने पीले पन्नों से

    हल्के-फुल्के, भटकते-बिचरते

    भूली-बिसरी घटनाओं की डाँवाडोल झलकियाँ भी आईं

    बरसाती रातों वाले हुआँ-हुआँ करते मरियल सियार

    बुआ के सरकारी मकान का छुई-मुई वाला अहाता आया ध्यान में

    पहाड़ी नीम के फूलों पर भन्नाती मधुमक्खियाँ आईं

    करीवा आम का भीमकाय वृक्ष भी आया—

    जड़ों, फलों, माटों, और मोरों समेत

    आए अम्मा के बेना बनाते फुलरा लगाते हाथ

    आई झकास उनके रेशमी बालों से उठती हिमगंगे की

    धान रोपाई के बाद बाबा की चुचकी उँगलियाँ आईं

    आया दाहिने पैर का सड़ा अँगूठा

    पाँखी उठने के डर से गोधूलि के पहले

    हाली-हाली खाना पकाती चाची की जल्दबाज़ी आई

    गीतमाला सुनाने वाला चाचा का रेडियो आया घिर्र-घिर्र करता

    ख़रगोश, घोड़े, चिड़िया कढ़े स्वेटर का,

    ढंगलियाता आया मरून-सफ़ेद ऊन का गोला

    माँ बुनती थीं जिसे लालटेन की नारंगी-बैगनी रौशनी में

    तिर आया केवटहिया की लालमनी का चेहरा

    जिसे नाम लिखना सिखाया था लकड़ी से ज़मीन पर

    आई उसकी लखानी की एड़ियाँ कटी

    नीली बद्धियों वाली चप्पल चटर-चटर करती

    आए संस्कृत वाले के.डी. पांडे गुरुजी

    पाणिनी महेश्वर सूत्र पढ़ाते—

    ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त,

    आया महबूब के पके शहतूत से होंठों का ख़याल भी

    घी-गुड़-रोटी का स्वाद भी

    धँसे गालों, उल्टे बालों, काले कंचे-सी आँखों वाले रिल्के आए

    रोम से पत्र लिखते काप्पुस को

    गई सुबह की रौशनी परदों से छनकर बिछौने तक

    नहीं आई वह कविता जो फँसी थी हलक़ में गेहूँ के टूँड़-सी

    जिसने जगाये रखा भिनसारे तक।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यशस्वी पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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