ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र
याद करो
वो बचपन―
चशमुल्ली, भोंदू, डरपोक...
याद करो
वो सुबह और वो रात―
जब झड़े बालों वाले, मरियल बीमार कुत्ते सरीखा
बार-बार दुत्कारा उन्होंने तुम्हें अपनी ज़िंदगी की चौखट से
याद करो
वो दिन―
जब आत्महत्या के मुहाने पर खड़े तुम
अपने फेफड़ों में जमे दुःख के बर्फ़ को
पिघलाने के लिए फूँक रहे थे सस्ती सिगरेट
याद करो
वो सच―
जो एक उदास-जुआरी ने बताया था तुम्हें
कि जिसके दिल में गहराई होती है
इस धरती पर बेहद उदासी ही उसका नसीब है
याद करो
वो झूठ―
जो किसी के आहत भर से चटक गया था
कि इस ग्रह की माटी में नहीं खिलता स्नेह का फूल
याद करो
वो पल―
पहली बार हुआ था एहसास तुम्हें
कि ख़ुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार...
...और जो कुछ भी कर सकते हो याद, करो।
परंतु अंत में करना याद
वो उम्मीद―
कि एक सुबह तुम सोकर उठोगे
और उसका चेहरा होगा सामने तुम्हारे
जिसने तुम्हारे किराया ना भरने पर भी
नहीं कराया ख़ाली तुमसे अपने दिल का कमरा
कि मेरे दोस्त!
ज़िंदगी की गाड़ी
उम्मीद के डीज़ल से चलती है।
- रचनाकार : आसित आदित्य
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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