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आओ ताहिती चलें

aao tahiti chalen

अनुवाद : दिनेश चमोला

डगों टाया

डगों टाया

आओ ताहिती चलें

डगों टाया

और अधिकडगों टाया

    कवि के पलायनवाद की ही तरह

    लटके हुए हैं

    सजीले आम के पत्ते

    अपने बढ़े हुए गुच्छे फैलाए

    धरती के साथ

    जब तक गिरते नहीं

    आओ चलें हम

    ताहिती द्वीप के

    समुद्र के किनारे

    जब कभी तुम देखोगे

    आम के पत्तों को छूते

    और परिपक्वता से सिर हिलाते

    सूर्य की रोशनी में चमकीले और लाल

    और ताहिती द्वीप पर

    गैगंनिन की लालिमा

    नहीं सुनाई देता

    इस द्वीप पर कोई राजनैतिक आक्रोश

    नहीं होते कोई छायाचित्र

    अथवा अलौकिक कहानियाँ

    महज़ बताई जाती है मानवता की

    आत्म-संतुष्ट कल्पना से

    यहाँ, नहीं सुन सकते तुम

    दादी माँ की चीख़ और गालियाँ

    केवल सुनाई देते हैं यहाँ

    घोंसलों में छिपे पक्षियों के गीत

    खेल सकते हो

    तुम प्रवाल के समीप

    चित्तीदार पानी के ख़तरनाक साँपों के बीच

    नहीं मिलती हमें

    हम पी लेंगे कोई शराब

    नारियल का सूखा दूध

    और बालू के तट पर

    मिलने वाली कोई शक्तिवर्द्धक चीज़

    जब हमें लगेगी भूख

    तो

    तोड़ेंगे भारी तनों से केले

    और खाएँगे धुले मुँहों से छिलकर

    विटामिन युक्त

    शक्तिवर्द्धक फल

    और क्या चाहते हो तुम?

    भूल जाएँ सब कुछ

    तुम और मैं

    हाथों में हाथ रख

    केवल तुम और मैं

    और

    गा सकते हैं हम आज़ादी से

    और अगर तुम चाहो कोकोआ के

    संग-संग ज़ोर से कुछ कहना

    और क्या चाहते हो तुम?

    झूठ बोल सकते हो तुम

    पेड़ों के नीचे

    और अपनी अधबुझी आँखों के धुँधलेपन से

    स्वप्निल उत्सुकता में

    खोज सकते हो तुकबंदियाँ

    तुम किसे कहते हो प्रेम?

    आओ चलें दूर...बहुत दूर

    इन लोगों के भँवर जाल से

    बताओ

    कब चलोगे तुम?

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 89)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : डगों टाया
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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