आजिज़ स्त्रियाँ

aajiz striyan

ज्योति रीता

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आजिज़ स्त्रियाँ

ज्योति रीता

और अधिकज्योति रीता

    आजिज़ स्त्रियाँ

    एक दिन लिखेंगी त्यागपत्र

    त्यागपत्र में मसला होगा

    पेडू और एड़ी में दर्द का

    लोग क्या कहेंगे

    जैसे सवालों से वे बचा लेंगी

    मकान की झूलती दीवारों को

    भरवा करेले के मसालों से भर देंगी

    खोखली बेजान दरारों को

    उखड़ती जड़ों पर डालेंगी कंपोस्ट खाद

    होंठों पर दंतुरित मुस्कान

    कायम रखते हुए सबसे कहेंगी

    सब ठीक है

    सब कुछ ठीक है

    बिस्तर की असहजता बंद कमरे से बाहर

    कभी नहीं पाएगी

    नाख़ून को चबाने

    मिट्टी को कुरेदने की अवस्था बची रह जाएगी

    ख़्वाबगाह के लोक में विचरते हुए पा जाएँगी तृप्ति

    बच्चों से जुड़ी यादें अकेली ही सहेजती रहेंगी

    भागते-भागते पर्स में रख लेंगी

    एक धुला हुआ थोथा सेब

    हल्का गुनगुना पानी पीते हुए गटक जाएँगी

    दर्द की सारी दवाइयाँ

    विटामिन्स की दवाइयाँ भूल आई हैं

    बिस्तर के सिरहाने

    औरों से ज़्यादा ज़ोर से हॅंसने की कोशिश में

    टपक जाएगी एक बूँद आँसू

    पूछने पर कहेंगी किसी बवंडर की धूल है आँखों में

    जो चौमास सोई नहीं

    अभी पारी उनके हिस्से है

    आँखों में लाल रक्त लिए

    उतारकर मंगलसूत्र मिटाकर माथे की रंगोली

    फ़ज़्र की नमाज़ से पहले लिखती हैं त्यागपत्र

    हे प्रियकांक्षी!

    संभालो अपना राजपाठ

    अयोग्य स्त्री तुम्हारे बंद तयख़ाने से देती है

    तुम्हें त्यागपत्र।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति रीता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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