सौंदर्य वर्णन (एक)

saundarya warnan (ek)

मुल्ला दाउद

मुल्ला दाउद

सौंदर्य वर्णन (एक)

मुल्ला दाउद

और अधिकमुल्ला दाउद

    राजा ‘अवर त' अधर ‘तरासे'। ‘जनु मनुसई के' रगत पियासे॥

    ‘ईंगुर घोरि' ‘दरेरइं' लिखे। रगत ‘पियइ मनुसइं कर सिखे॥

    सहज रात जनु सुरंग पंवारी। ‘औ (अउ)' रंगि राते पांन सुपारी॥

    ‘हार डोर बहु तिन्ह' रंग राता। ‘तिन्ह रंगि' बाजुरि कही 'सो' बाता॥

    ‘जानु तरासा' कुसु ‘लइ' चीरा। खांड आनि तेहि ऊपर बीरा॥

    अस ‘कइ' अधर ‘बरनि गए (?)' 'राजा भा’ मन भोरु।

    रगत धार दुहुं 'नैनन्हि' रस ‘धरि' मारा चोरु॥

    चांदा के अधर ऐसे त्रास देने वाले हैं, मानो वे मनुष्य के रक्त के प्यासे हों। वे ऐसे रक्त वर्ण के हैं मानो हिंगुल घोल कर उसकी धारियाँ बनाई गई हों; उन्होंने मनुष्यों का रक्त पीना सीख रक्खा है। वे सहज ही रक्त हैं, जैसे सुरंग प्रवाल हो और पान-सुपारी के रंग से और भी अधिक रक्त-वर्ण के हो गए हैं। हारों की डोरी भी उनके रंग से बहुत रक्तिम हो गई है और उन्हीं के रंग में रंग कर बाजिर यह वार्ता कह रहा है। मानो वे त्रस्त करने वाले कुश को लेकर चीरे हुए हैं इसलिए रक्तवर्ण के हैं और उन पर खांड लाकर डाली हुई है। वे अधर जब इस प्रकार वर्णित किए गए, तो राजा भ्रमित हो गया। उसके दोनों नेत्रों में रक्त की धारा उमड़ पड़ी, और वह ऐसा हो गया मानो अपने अनुराग के कारण कोई चोर ठिठककर खड़ा रह गया हो और बाद में पकड़ कर मारा गया हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चांदायन (पृष्ठ 68)
    • रचनाकार : मुल्ला दाउद
    • प्रकाशन : प्रामाणिक प्रकाशन, आगरा
    • संस्करण : 1967

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