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वेणुवन में बाँसुरी की तान

venuvan mein bansuri ki taan

ज्ञान प्रकाश आकुल

ज्ञान प्रकाश आकुल

वेणुवन में बाँसुरी की तान

ज्ञान प्रकाश आकुल

और अधिकज्ञान प्रकाश आकुल

    वेणुवन में बाँसुरी की तान में डूबे हुए कवि!

    काश!

    तुमको ज़िंदगी का ताप भी महसूस होता।

    स्वर मछेरों से मिलाकर गा रहे तुम गीत अक्सर

    मछलियों की खलबली से थरथराई झील गाते

    जुगनुओं की चीख़ सुनकर सूर्य उगने से रहा, पर

    तुम जहाँ पर थे उपस्थित मोमबत्ती ही लगाते

    नित्य सुख-विस्तार के अभिमान में डूबे हुए कवि!

    काश!

    तुमको पीर का परिमाप भी महसूस होता।

    दूर था पानी घड़े में कंकड़ों की खोज करते

    तो पता चलता कि सचमुच प्यास का आभास क्या है

    और हर कंकड़ सुनाता फिर प्रयासों की कहानी

    भर चुका पानी बताता जीत का विश्वास क्या है

    खोखले सम्मान स्वागत गान में डूबे हुए कवि

    काश!

    तुमको अश्रु का आलाप भी महसूस होता।

    क्या ज़रूरत थी निवेदन नागकुल को भेजने की

    सोच लेते बस तुम्हारे भाग्य में चंदन नहीं है

    यह तुम्हारी कामना जो दूर से तुमको लुभाती

    सिर्फ़ मायावी हिरन है वस्तुतः कंचन नहीं है

    देवताओं से मिले वरदान में डूबे हुए कवि!

    काश!

    तुमको वंचितों का शाप भी महसूस होता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्ञान प्रकाश आकुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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