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बढ़कउनू बइठे कुरिया मा

baDhakaunu baithe kuriya ma

रामशंकर वर्मा

रामशंकर वर्मा

बढ़कउनू बइठे कुरिया मा

रामशंकर वर्मा

और अधिकरामशंकर वर्मा

    बढ़कउनू बइठे कुरिया मा

    बीड़ी पर बीड़ी जला रहे

    दुइ चारि जने गाँसे बइठे

    मूड़ी गिरगिटु असि हला रहे।

    बढ़कउनू बोले दउवा ते

    सहरन ते आपन गाँव नीक

    हम लउटेन काल्हि नखलऊ ते

    तुम सुनौ हुवाँ हम जौनु दीख

    कलजुगु मूडिन पर बइठि गवा

    हम अबहूँ तक खलभला रहे।

    पोता कै बर्सगाँठ बप्पा

    छोटकी बहुरेवा फोनु किहिस

    हम बचुका कै गठरी बांधेन

    नखलउवै बस पहुँचाए दीहिस

    रस्ता मा गटई सूखि गवै

    हम बिन पानी निर्जला रहे।

    दादू आए दादू आए

    सुनिकै सहला मनु लोने का

    कपड़न कै गर्दा देखि मुला

    मुंहु बनिगा चौदा कोने का

    बहुरेवा बोली ग्वाड ध्वाव

    हम नलका बाहेर चला रहे।

    सँझा का भै जब बर्सगाँठ

    कोऊ परोसी देखि परा

    बचुवा ब्वाला सब गैर जाति

    सुनि म्वार परी भरि खूनु जरा

    फिरि फूटि फुलक्का केकु कटा

    दीदा यह द्याखत कला रहे।

    दड़बा मा रहिकै सात दिना

    पसुरी हड्डिन मा जङ्ग लागि

    चुल्हघुसनी दुनिया देखि-देखि

    हमरे लेऊँड़ी तक बरी आगि

    ना कोउ मनई ते बात करै

    सब भकुरि रहे तिलमिला रहे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामशंकर वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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