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कलाकार की एक और उपयोगिता

kalakar ki ek aur upyogita

एक प्रतापी राजा की बेटी बहुत सुंदर और प्रतिभावान थी। उसे घोड़े पर बैठकर शिकार करना बहुत अच्छा लगता था। एक दिन हिरण के पीछे सरपट घोड़ा दौड़ाते हुए अचानक उसने पाया कि घने जंगल में वह बिलकुल अकेली है। वह पेड़ पर यह देखने के लिए चढ़ी कि शायद उसके अनुचर कहीं नज़र जाएँ। सबसे ऊपर की डाल पर पहुँचने पर जंगल की विकराल आग देखकर वह दंग रह गई।

उसने देखा कि पेड़-पौधों और झाड़-झंखाड़ को अपने आगोश में लेती और अग्निजिहाओं से पक्षियों के घोंसलों और जानवरों की माँदों को घेरती आग अपने रास्ते में आती हर चीज़ को लील रही है। हिरण आदि जानवरों के झुँड भयाक्रांत होकर भाग रहे थे और भिन्न-भिन्न रंगों के पक्षी दमघोंटू घने धुएँ से घिरकर चीख़ते, चीत्कार करते आग में गिर रहे थे।

इस भीषण दृश्य के बीच राजकुमारी ने देखा कि हंस-हंसिनी का एक जोड़ा अपने नन्हें बच्चों को बचाने के लिए प्राणप्रण से चेष्टा कर रहा है। पंखविहीन असहाय ललौंछे बच्चे आसन्न मृत्यु को देखकर पतली आवाज़ में चीख़ रहे थे। यह देखकर राजकुमारी अंदर तक हिल गई। हंस-हंसिनी कभी बच्चों को उठाकर ले जाने की निरर्थक चेष्टा करते और कभी विक्षिप्त-से इधर-उधर उड़ते। आग तेज़ी से उनके पास आती जा रही थी। उन्हें अपने बच्चों और स्वयं के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। लपटों को घोंसले के बिलकुल नज़दीक आया देखकर बूढ़े नर हंस ने बच्चों को बचाने का अंतिम प्रयास किया और अपनी जान बचाने के लिए उड़कर सुरक्षित स्थान पर चला गया। बच्चों को बचाने के लिए हंसिनी उन पर गिर पड़ी। हंसिनी और उसके बच्चों के आर्त्तनाद के बीच अग्निजिह्वाएँ उन्हें लील गईं।

राजकुमारी ने पेड़ पर सुरक्षित बैठे हुए यह सब देखा। यह देखकर वह द्रवित भी हुई और क्रोध भी आया। उसने सोचा, “नर कितने मतलबी और बेईमान होते हैं! पखेरू हो या जानवर या आदमी, नर सब एक जैसे होते हैं इसमें कोई शक नहीं। मैं उनसे कोई वास्ता नहीं रखूँगी।” उसने प्रण किया कि वह कभी शादी नहीं करेगी, किसी भी सूरत में नहीं।

उसके अनुचर बहुत व्यग्रता से उसे खोज रहे थे। वे जल्दी ही उससे मिले और सब घर लौट गए।

उस दिन से राजकुमारी गंभीर रहने लगी। वह पुरुष की छाया से ही दूर भागती थी। माँ-बाप से उसने साफ़ कह दिया कि वह विवाह नहीं करेगी। यह सुनकर बूढ़े माँ-बाप परेशान हो गए। उन्होंने इस भीषण निर्णय का कारण जानना चाहा पर राजकुमारी चुप्पी साध गई। इस पर उसने एक शब्द भी नहीं कहा। कुछ दिनों में सबको पता चल गया कि राजकुमारी आजीवन कुँआरी रहेगी। उससे विवाह के इच्छुक राजकुमार निराश होकर पीछे हट गए।

कुछ समय उपरांत एक विख्यात चित्रकार दरबार में आया। उसने राजा के लिए कई उत्कृष्ठ चित्र बनाए। दो एक महीने के बाद वह वहाँ से जाने की सोच ही रहा था कि एक दिन उसने राजकुमारी की एक झलक देखी। उसके सौंदर्य से वह इतना अभिभूत हुआ कि उसका चित्र बनाने की इच्छा तो वह रोक सका। इसके लिए उसने राजकुमारी से कुछ समय देने का अनुरोध किया। थोड़ी आनाकानी के बाद राजकुमारी इसके लिए राज़ी हो गई। धैर्य और एकाग्रता से उसने राजकुमारी का बहुत जीवंत चित्र बनाया। चित्र पूरा होने पर उसे राजकुमारी को देने की बजाए उसने उसे अपने पास ही रखा और एक दिन चुपचाप शहर छोड़कर चला गया।

वहाँ से वह दूसरे राज्य में गया। वहाँ का राजा अच्छे चित्रों पर जान देता था। राजकुमारी के चित्र को उसने ख़रीद लिया। चित्रकार को उसके एवज में बहुत धन मिला। राजा ने उसे महल के एक बड़े कक्ष में टाँगा। जिसने भी उस चित्र को देखा वह उसे सराहे बिना रह सका। जो भी देखता वह राजकुमारी के सौंदर्य को मंत्रमुग्ध होकर देखता रह जाता। सब यह जानने को उत्सुक हो उठे कि यह चित्र किसका है।

उस राजा के एक बेटा था। शिकार से लौटकर उसने भी राजकुमारी का चित्र देखा और देखते ही उससे दीवानावार प्यार करने लगा। उसे कोई यह नहीं बता सका कि यह किसका चित्र है और वह कहाँ रहती है। प्रेमरोगी राजकुमार का कहीं भी जी नहीं लगता था। संगी-साथियों से भी वह कटा-कटा रहने लगा। ही वह किसी से बात करता था। रात-दिन वह अपने कमरे में उदास पड़ा रहता था। उसका बुझा-बुझा चेहरा देखकर राजा का हृदय व्यथा से भर जाता। कुछ ही दिनों में राजा को इसका कारण पता चल गया। राजकुमार के स्वास्थ्य को लेकर वह चिंतित हो उठा। चित्रकार का पता लगाने के लिए उसने चारों तरफ़ दूत भेजे। पर जैसा कि कलाकारों का स्वभाव होता है चित्रकार का कहीं पता नहीं चला। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ गया है।

राजकुमार की सेहत और मिजाज़ दिनोंदिन बिगड़ते चले गए। जो भी उसके पास जाता वह उस पर बरस पड़ता। बूढ़ा प्रधानमंत्री राजपरिवार का हितैषी था।

एक दिन वह राजकुमार को दिवास्वप्न से बाहर लाने के लिए उसके पास गया। राजकुमार भड़क उठा। उसने तुरंत प्रधानमंत्री को फाँसी पर चढ़ाने का हुक्म दे दिया। राजकुमार को कहा वहाँ ब्रह्मवाक्य था। बूढ़े मंत्री के बचने का कोई रास्ता नहीं था। राजा को इसका पता चला तो उसने राजकुमार को बुलवाया और उसे फाँसी को कुछ दिनों के लिए स्थगित करने पर जैसे-तैसे राज़ी किया, ताकि प्रधानमंत्री अपने घर के मामले सुलटा सके और राजकाज का दायित्व दूसरे को सौंप सके। बूढ़े प्रधानमंत्री को कुछ समय के लिए घर जाने की अनुमति मिल गई।

प्रधानमंत्री ने घरवालों को इस बारे में कुछ नहीं बताया। लेकिन उन्हें उसके नियति का पता चल गया जो उसका इंतज़ार कर रही थी। प्रधानमंत्री अपनी छोटी बेटी को बहुत चाहता था। उसे इसका पता चला तो वह पिता के पास गई और उसका दिल बहलाने के लिए इधर-उधर की बातें करने लगीं। इससे उसकी चिंता कुछ कम हुई। बेटी ने बातों-बातों में पिता से राजकुमार के क्रोध और उदासी का कारण मालूम कर लिया।

प्रधानमंत्री की बेटी बहुत बुद्धिमान और चतुर थी। उसने अदेर पिता को विपत्ति से निकालने की युक्ति सोच ली। वह राजमहल गई और येन-केन-प्रकारेण राजकुमार से भेंट करने में सफल हो गई। उसने राजकुमार से अनुरोध किया कि वह उसके पिता को एक नियत अवधि तक जीवनदान दे दे। इस बीच वह ख़ुद यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि मुसीबत की जड़ वह अद्भुत चित्र किसका है।

राजकुमार बहुत ख़ुश हुआ। प्रधानमंत्री की बेटी की बात बहुत तर्कसम्मत थी। उसे पहली बार अपने धुँधले सपने के सच होने की आशा बंधी। अपने निर्मम आदेश को उसने थोड़ा उदार कर दिया। प्रधानमंत्री ने राजमहल में अपना काम फिर संभाल लिया। घटनाओं के इस मोड़ से राजा को बहुत ख़ुशी हुई। उसने प्रधानमंत्री की बेटी को सफलता के लिए आशीर्वाद दिया।

प्रधानमंत्री की बेटी ख़ुद बहुत अच्छी चित्रकार थी। महान चित्रकार के चित्र की उसने बहुत अच्छी नक़ल तैयार की और मरदाना कपड़े पहनकर घुम्मकड़ चित्रकार के रूप में घर से निकल पड़ी। उसे कुछ पता नहीं था कि वह कहाँ जाएगी और क्या करेगी। पर वह अपने पिता को बहुत चाहती थी। उसके मन में एक ही बात थी कि जैसे भी हो उसे पिता का जीवन बचाना है। महीनों वह इधर-उधर भटकती रही। वह जहाँ भी जाती, जिससे भी मिलती उससे यह पूछती कि यह चित्र किसका है। पर उसे ऐसा कोई नहीं मिला जो चित्रवाली को जानता हो। पूरे एक साल तक वह यहाँ-वहाँ की ख़ाक छानती रही। वह लगभग निराश हो चली थी। एक दिन वह ऐसे दूरस्थ अजान देश में पहुँची जहाँ हर कोई चित्र वाली को जानता था। उसकी ख़ुशी का ओर-छोर रहा। सबने पूरे विश्वास से कहा कि यह हूबहू उनकी राजकुमारी का चित्र है। सबने यही कहा, “अरे, यह तो आजन्म कुँआरी रहने की प्रतिज्ञा करने वाली राजकुमारी है!”

प्रधानमंत्री की बेटी को आश्चर्य हुआ, “आजन्म कुँआरी? ऐसी भीषण प्रतिज्ञा उसने क्यों की?”

वे कहते, “यह तो उसके माँ-बाप भी नहीं जानते।”

उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। अगर इसने शादी नहीं करने का संकल्प कर लिया है तो वह उसे राजकुमार से शादी करने को कैसे राज़ी कर सकती है! भले ही वह उसके लिए मरा जा रहा है। इस देश में वह किसी को जानती भी तो नहीं! पर उसने हिम्मत नहीं हारी। जैसे भी हो उसे राजकुमारी तक पहुँच बनानी होगी। राजमहल के पास उसने एक मकान किराए पर लिया। वह सारे दिन बड़ी खिड़की के पास रंग और कूचियों से चित्र बनाती रहती। यह खिड़की राजमहल से साफ़ नज़र आती थी। धीरे-धीरे राजमहल में उस परदेशी लड़की के बारे में जिज्ञासा कुलबुलाने लगी। यहाँ तक कि राजा भी उसके बारे में जानने को उत्सुक हो उठा। एक दिन राजा ने उसके चित्र देखने के लिए उसे दरबार में बुलाया। उसके चित्र देखकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। राजा ने उसके चित्र ख़रीदे और कहा कि वह उस महल में कुछ चित्र बनाएँ जो वह अपनी इकलौती बेटी के लिए बनवा रहा है। इस बीच कई बार उसे राजकुमारी को देखने का अवसर मिला। राजकुमारी को देखकर उसे पक्का भरोसा हो गया कि उस सुविख्यात चित्रकार ने उसी का चित्र बनाया था। और वह चित्र देखकर राजकुमार होशोहवास खो बैठा था।

जब नए महल की दीवारें बनकर तैयार हो गई तो प्रधानमंत्री की बेटी ने उन पर भाँति-भाँति की आकृतियाँ और तस्वीरें बनानी शुरू कीं। अंदर की छत और मेहराबों को भी उसने चित्रों से सजा दिया। राजा और दरबारी जब-तब उन्हें देखने आते थे। उसके काम को सबने जी खोलकर सराहा। हर चित्र अपने में अनूठा और गहराई लिए हुए था। वह एक-एक चित्र की अपनी प्रांजल भाषा में बहुत सुंदर व्याख्या करती थी। हर चित्र में राजमहल की किसी स्त्री को चित्रित किया गया था। इनमें राजकुमारी की सहेलियाँ और सेविकाएँ भी थीं। प्रधानमंत्री की बेटी को लगता था कि इनमें से कोई कोई राजकुमारी के पुरुषों से विरक्ति और विवाह नहीं करने का कारण ज़रूर जानती होगी। इसीलिए उसने उनके चित्र बनाए और अपनी कला और बरताव से उनका मन जीत लिया। अंततः उनमें से एक ने अपने होंठ खोले। वह राजकुमारी की विश्वासपात्र थी। उसने प्रधानमंत्री की बेटी को भेद की बात बताई कि राजकुमारी ने जंगल में कैसा अद्भुत दृश्य देखा और कैसे उसका नर मात्र से दिल खट्टा हो गया।

यही तो प्रधानमंत्री की बेटी जानना चाहती थी। फिर उसने बैठक की दीवार पर ऐसा चित्र बनाया जो राजकुमारी के जंगल में देखे दृश्य का बिलकुल उलटा था। इस अपूर्व चित्र में मादा की चंचलता और नर की निष्ठा को दरसाया गया था। ‘हंस-हंसिनी की बजाय उसने हिरण-हिरणी को चुना और राजकुमारी के स्थान पर उसने अत्यंत रूपवान एक राजकुमार को चित्रित किया। ऐसा बाँका-छैला और बहादुर राजकुमार कि जिसे देखते ही हर औरत अपना दिल दे बैठे।

चित्र पूरा होते ही उसने राजकुमारी की संगी-संगातियों को इस बात के लिए राज़ी किया कि वे राजकुमारी को चित्र देखने के लिए कहें। कुछ दिन बाद राजकुमारी उसके चित्र देखने के लिए आईं। प्रधानमंत्री की बेटी का दिल बल्लियों उछलने लगा। राजकुमारी ने एक-एक चित्र को ध्यान से देखा। कलाकार की प्रशंसा करते वह अघाती थी। आख़िरकार वह हिरण-हिरणी और राजकुमार के चित्र के पास आई और मुँह बाए देखती रह गई। थोड़ी देर वह मूर्तिवत खड़ी सोचती रही और फिर मुड़कर चित्रकार से पूछा, “इस चित्र की कथा क्या है?”

प्रधानमंत्री की बेटी ने अवसर का लाभ उठाते हुए कहा, “राजकुमारी, इस चित्र का आधार हमारे देश के राजकुमार के साथ घटी सच्ची घटना है। वे शिकार के लिए जंगल में गए हुए थे। वहाँ उन्होंने जंगल की आग के बीच यह दृश्य देखा। यह दृश्य देखकर उन्हें मादा के ढुलमुपन और नर की निष्ठा का विश्वास हो गया। हो सकता है इसमें आपकी ज़्यादा दिलचस्पी हो, पर इससे हमारे देश में चिंता फैल गई। इस घटना ने राजकुमार का जीवन ही बदल दिया। इसके बाद से उनका औरतों पर से भरोसा ही उठ गया और उन्होंने विवाह करने से इंकार कर दिया। सिंहासन के उत्तराधिकारी इकलौते राजकुमार के इस निश्चय से हमारे राजा बहुत दुखी हैं। दरबारी भी परेशान हैं। किसी के कुछ समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए।”

राजकुमारी बीच ही में चिल्ला उठी, “कैसी अजीब बात है! क्या नर ज़्यादा भरोसेमंद हैं और मादाएँ कपटी हैं? इसके उलट मैं यह मानती रही हूँ कि सभी प्राणियों में नर झूठे और बेईमान होते हैं। पर अब देखती हूँ कि इसके भी दो पहलू हैं। मैंने एक ही घटना तो देखी थी और बिना अधिक सोचे-समझे उसी से अपना मन बना लिया। मुझे इस पर फिर से सोचना पड़ेगा।”

प्रधानमंत्री की बेटी ने कहा, “आज मैं कितनी ख़ुश हूँ आप उसका अंदाज़ नहीं लगा सकती। काश, हमारे राजकुमार भी आपकी तरह अपनी ग़लती को देख पाते! पर वे बहुत जिद्दी हैं।”

राजकुमारी ने कहा, “किसी को उन्हें इस बारे में बताना चाहिए। तब शायद मेरी तरह उनका मन भी बदल जाए। उनके जीवन की घटना से जैसे मुझे फ़ायदा हुआ, हो सकता है वे भी मेरे साथ जो हुआ उससे सबक लें। तुम निःसंकोच उन मेरे अनुभव की चर्चा कर सकती हो। शायद इससे उनका मन भी बदल जाए।”

आशातीत सफलता से प्रधानमंत्री की बेटी के हृदय की धड़कन बढ़ गई। कहने लगी, “इससे बढ़कर ख़ुशी मेरे लिए क्या होगी! निश्चित ही मैं घर पहुँचते ही उनसे बात करूँगी।”

कुछ ही दिनों में सबको पता चल गया कि राजकुमारी विवाह विरक्ति से मुक्त हो गई है। जल्दी ही उससे शादी करने की चाह रखने वालों की राजधानी में भीड़ लग गई। पर राजकुमारी ने उनकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया। उनमें से कोई भी उसे पसंद नहीं आया। उसका कारण यह था कि प्रधानमंत्री की बेटी के बनाए चित्र को देखने और उसमें अंकित राजकुमार के बारे में बातें करने से उसे अधिक रस मिलता था। राजकुमार के बारे में उसकी बातें और जिज्ञासाएँ ख़त्म ही नहीं होती थीं। राजकुमार में उसकी रुचि दिनोंदिन बढ़ती जाती थीं।

प्रधानमंत्री की बेटी को अब अच्छी तरह पता था कि उसे क्या करना है। राजकुमार के पौरुष और उसके गुणों को दरसाने वाले तरह-तरह के क़िस्से सुनाकर वह आग को हवा देने लगी। उसके बखान इतने जीवंत होते थे कि एक दिन राजकुमारी से रहा गया और उसने राजकुमार से मिलने की इच्छा प्रकट की। प्रधानमंत्री की बेटी यही तो चाहती थी। उसने राजकुमारी से वादा किया कि वह अपने देश जाएगी और राजकुमार को मनाने की पूरी कोशिश करेगी। वह उसे राजकुमारी का क़िस्सा सुनाएगी और उसे राजकुमारी से मिलने के लिए प्रेरित करेगी।

घर लौटकर उसने पिता और राजकुमार को अपनी कामयाबी के बारे में बताया। यह जानकर उन्हें इतनी ख़ुशी हुई कि पूछो मत! बूढ़े पिता ने उसे गले लगाते हुए कहा कि वह उसकी प्राणदाता है। राजकुमार ने उसे उपहारों से लाद दिया। राजकुमार ने यात्रा की तैयारी में एक दिन भी बरबाद नहीं किया। अनगिनत अनुचरों के साथ वह चित्रवाली राजकुमारी के पिता के दरबार में हाज़िर होने के लिए चल पड़ा। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि राजकुमारी ने उसे तुरंत अपना जीवनसाथी स्वीकार कर लिया। उनके विवाह के भव्य समारोह में दोनों राज्यों ने पानी की तरह पैसा बहाया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 138)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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