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पंडकी

panDki

अन्य

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एक थी चिड़िया। उसका नाम था पंडकी। वह चिड़िया हमारी ही तरह गरीब थी। मेहनत-मज़दूरी कर,धान कूट कर जीवन-यापन करती थी। वह चिड़िया साहूकार के घर से धान लाई थी जिसे कूट कर उसे चावल वापस पहुँचाना था। धान लाना,उसे कूटना और चावल साहूकार के घर पहुँचा देना उसका काम था। तो रोज़ की...तरह वह धान कूट रही थी। उसके तीन-चार बेटे-बेटियाँ थीं। उन्हीं में से एक सबसे छोटी बेटी ने चावल के कुछ दाने चुग लिए। उसने कितने दाने चुगे,पता नहीं! माँ चिल्ला उठी,अरे! यह तो उस साहूकार के घर का चावल है। चावल बराबर पहुँचाना है। उसमें से जो बच जाए और जो साहूकार दे दे उसे ले आना है। इसके बाद ही अपने बेटे-बेटियों को खिलाना है। अब मुझे यह चावल साहूकार के घर पहुँचाना है और पता नहीं इस बच्चे ने कितने दाने चुग लिए! पता नहीं चावल कितना बचेगा? यदि चावल बराबर नहीं हुआ तो वह आदमी मुझ पर ग़ुस्सा करेगा। यह तो बड़ी मुश्किल हो गई। ऐसा सोचती चिड़िया क्रोधित हो गई और मूसल से उस बच्चे को दे मारा। उसकी मार से बच्चा मर गया या बचा,पता नहीं। उसने बच्चे को मारा और चावल लेकर साहूकार के घर पहुँचाने चली। राजा के घर पहुँचाने पर नाप-जोख की गई। नापने पर चावल केवल बराबर निकला बल्कि कुछ अधिक ही था। वह सोचने लगी कि उसके बच्चे ने पता नहीं कितने दाने चुगे और वह यहाँ कितना चावल लायी, यहाँ तो चावल अधिक ही निकला। हे भगवान! फिर उसने अपने हिस्से का चावल लिया और घर पहुँच गई। उसने बच्चे को मारा था,अपने बच्चे को। वह बच्चा मरा पड़ा था। चिड़िया घर पहुँची और चावल को एक ओर रख कर अपने बच्चे को उठाने लगी,'उठ बच्चे,उठ! उठ बच्चे,उठ!' किंतु वह बच्चा कैसे उठता भला! वह तो मर चुका था। वह कहने लगी,'नहीं बेटी,मैंने जितना चावल पहुँचाया वह निर्धारित मात्रा से भी अधिक था। तुम उठो।' ऐसा कहते वह चिड़िया अपने बच्चे को उठाने लगी किंतु वह तो मर चुका था। तब यह चिड़िया उसी दिन से आज तक अपने मृत बच्चे को 'उठ बेटे, उठ। उठ बेटे,उठ' कहती उठा रही है,उसकी वही आवाज़ हम सुनते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 29)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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