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साल और गिद्ध

saal aur giddh

अन्य

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बहुत समय पहले की बात है,घने जंगल में पहाड़ियों के बीच एक गाँव बसा हुआ था। वहाँ रहने वाले जंगली लोग कंद-मूल-फल और शहद पर निर्भर रहते थे। उसी गाँव के एक घर में पति-पत्नी और एक तीन माह का बच्चा रहता था। पति प्रतिदिन जंगल से कंद-मूल-फल के अलावा शहद भी लाता था,जिसे खाकर वे लोग अपना जीवन-यापन करते थे। पत्नी को शहद बहुत अच्छा लगता था। वह मन में सोचा करती थी कि उसका पति झाड़ में गरम-गरम शहद खाता होगा और उसके लिए ठंडा शहद लेकर आता है। एक दिन पति के जंगल जाते समय पत्नी भी जंगल जाने के लिए तैयार हो गई। पति के बहुत समझाने पर भी वह नहीं मानी और पति के साथ जंगल चली गई। साथ में अपने बच्चे को भी ले गई। जंगल में घूमते-घूमते सरई के एक पेड़ पर शहद का एक बड़ा-सा छत्ता लटका हुआ दिखा। उस सरई के पेड़ पर पत्नी के लिए चढ़ पाना नामुमकिन था। यह देख कर पति ने सूखी लकड़ियों से उसके लिए सीढ़ी बना दी और पत्नी को उसी सीढ़ी पर से पेड़ पर चढ़ा दिया। उसकी पत्नी इस तरह शहद तक जा पहुँची। तब पति ने कहा कि अब वह गरमागरम शहद खाए। इतना कह कर पति उस सीढ़ी के सारे पायदान एक-एक कर निकालता हुआ नीचे उतर आया और अपने घर चला गया। बच्चा पेड़ के नीचे लिटाया गया था। जब काफ़ी देर तक उसकी माँ पेड़ पर से नहीं उतरी तो वह भूख के मारे ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसे रोता सुन कर माँ ने पेड़ पर से नीचे उतरना चाहा किंतु वह नहीं उतर पाई। तब उसने बच्चे का रोना सहन कर सकने के कारण पेड़ पर से नीचे छलाँग लगा दी। इससे वह एक गिद्ध पक्षी बन गई। उसका बच्चा कर्रा के छोटे-छोटे पत्तों पर लेटा था,सो वही कर्रा के पत्ते बच्चे के शरीर से चिपक कठोर हो गए और इस प्रकार वह बच्चा साल बन गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 14)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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