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चीते के जरिए मौत

chite ke jariye maut

किसी जंगल के छोर पर एक मड़ई में दो भाई-बहन रहते थे। उनके माँ-बाप बहुत समय पहले चल बसे थे, इसलिए बहन के लिए लड़का देखने की ज़िम्मेदारी भाई पर पड़ी। एक बार दूर-गाँव का एक परदेशी शिकार के लिए उनके पास वाले जंगल में आया और रास्ता भटक गया। अँधेरा घिरने पर वह उनकी मड़ई पर आया। उन्होंने उसे शरण दी। बहन उस पर मोहित हो गई और उनका ब्याह हो गया। बहन उसके साथ ससुराल चली गई।

ब्याह के कुछ महीनों बाद भाई ने रास्ते के लिए फल वग़ैरा जुटाए, गाँव वालों से बहन के ससुराल का रास्ता पूछा और बहन से मिलने चल पड़ा। रास्ते में कई जंगल, पहाड़ और घाटियाँ पड़ती थीं। अभी वह एक जंगल में ही था कि रात हो गई। वह काफ़ी हट्टा-कट्टा था। उसके पास तीर-कमान और गैंती थी। फिर भी चीते और दूसरे जंगली जानवरों का डर तो था ही। थकान से चूर वह एक माहुल के नीचे बैठा। उसके बैठते ही माहुल ने उससे उसकी डाल पर आराम करने को कहा। वह माहुल पर चढ़ा, एक टेढ़ी मोटी डाल पर जमकर बैठा और पोटली खोलकर फल और कंद खाने लगा। हौले-हौले अँधेरा गाढ़ा हो गया। फिर भी पेड़ के नीचे भालू, चीते और साँप का आना-जाना वह देख सकता था। कुछ समय उपरांत एक चीता आया और माहुल के पेड़ से बोला, “चलो, गाँव चलें। वहाँ एक बच्चे का जन्म होने वाला है। चलो, पता करते हैं कि उसकी मौत कैसे होगी।” माहुल ने कहा कि वह नहीं चल सकता। उसके यहाँ मेहमान आया हुआ है। चीते को थोड़ी तकलीफ़ तो होगी, पर क्या वह सुबह आकर माहुल को बच्चे के बारे में बता नहीं सकेगा?

गाँव का नाम सुनकर माहुल पर बैठे भाई के कान खड़े हो गए। अरे, इसी गाँव में तो उसकी बहन का ससुराल है! कहीं उसके बहन के तो बच्चा नहीं होने वाला? उत्सुकता के मारे रात भर उसे नींद नहीं आई। भोर में चीता और दूसरे जानवर लौट आए। उन्होंने माहुल को बताया कि नवजात शिशु की जिस दिन शादी होगी उसी दिन उसे एक चीता मार डालेगा। उन्होंने यह भी बताया कि बच्चे का बाप गाँव का मुखिया है।

भाई जान गया कि यह बच्चा कौन है। उसका बहनोई ही तो गाँव का मुखिया है! वह भागा-भागा बहन के ससुराल गया। सचमुच रात को बहन के बच्चा हुआ था। जंगल के जानवरों से वह जान गया था कि कुछ ही घड़ी पहले जन्मे उसके भानजे की मौत कब और कैसे होगी। पर उसके बहन-बहनोई इस बात से अनजान थे।

भाई पहली बार बहन के ससुराल आया था। उसकी ख़ूब ख़ातिरदारी की गई। वहाँ से लौटते समय उसने उनसे बार-बार जोर देकर कहा कि भानजे की शादी पर वे उसे बुलाना हरगिज़ भूलें।

बरस बीतते चले गए। कई बार पत्तियाँ और फूल झड़े। भानजा बढ़ते-बढ़ते ख़ूबसूरत नौजवान हो गया। माँ-बाप ने अच्छी लड़की देखकर उसकी सगाई कर दी और दूल्हे के मामा को ब्याह का न्यौता भेजा। मामा फौरन बहन के ससुराल पहुँचा। वहाँ भोज और हँसी-दिल्लगी में शामिल होने की बजाए वह छाया की तरह दूल्हे के साथ लगा रहा—एक हाथ में तीर-कमान और दूसरे हाथ में गैंती लिए आक्रमण के ख़ातिर हरदम तैयार। रात को जिस झोंपड़ी में भानजा सोया उसके बाहर वह रात भर चाक-चौबंद बैठा रहा। सुबह भानजा डोल-डाल के लिए गया। मामा की चेतावनी पर उसने ख़ास ध्यान नहीं दिया। एक चीता झाड़ियों में लेटा उसका इंतज़ार कर रहा था। उसे देखते ही चीते ने उस पर छलाँग लगाई। लेकिन मामा बरसों से इसी घड़ी की तो बाट जोह रहा था। वह पलक झपकते पहुँचा और चीते का काम तमाम कर दिया।

भाई ने बहन, बहनोई और भानजे को बरसों पहले जंगल में सुनी चीते की भविष्यवाणी के बारे में बताया। ख़ुशी से बहन की आँखों में आँसू गए। बेटे की जान बचाने के लिए उसने भाई का बहुत-बहुत एहसान माना।

सारी बात सुनकर भानजे ने ज़मीन पर पड़े मृत चीते को देखा और विजयोल्लास से चिल्लाया, “ससुरा मुझे मारने आया था!” कहते हुए उसने चीते के सर पर लात मारी। पर ग़लती से उसका पैर चीते के खुले मुँह में चला गया। चीते के आगे के नुकीले दाँत उसके पंजे में घुस गए। ख़ून का फ़व्वारा फूट पड़ा। घरवालों ने बहुत कोशिश की, पर ख़ून बहना बंद नहीं हुआ और वह मर गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 84)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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