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मचिअहि बैठी जे गौरा

machiahi baithi je gaura

अज्ञात

अज्ञात

मचिअहि बैठी जे गौरा

अज्ञात

और अधिकअज्ञात

    मचिअहि बैठी जे गौरा, तखत शिवशंकर हो

    शिव लागि गये कासी मा नहावन, चलहु नहावन हो।

    छोट-मोट बिरवा कदम कइ, पतवन झालरि हो

    हो तेहि तर ठाढ़े राजा रामचन्द्र दतुइनि तोरहु हो।

    राजा दशरथ के पोखरवा, हो राम दतुइनि करैं

    मोरी सखिया सोने के घइलवा सितल रानी झुकवन पानी भरैं।

    मचिअहि बैठल जसोदा, कृष्ण अरज करे

    मइया हमरे गेनुलवा कई साध, गेनुलवा हम लेवइ हो।

    दशरथ सुत खेलत होरी, समाज बटोरी

    रामचन्द्र करताल बजावल, हनुमत लिहे ढोल चिकोरी,

    समाज बटोरी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पूर्वांचल के लोकगीत (पृष्ठ 14)
    • संपादक : बी.एल.द्विवेदी, कपिल तिवारी और नवल शुक्ल
    • प्रकाशन : मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद्, भोपाल का प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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