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भोजपुरी लोकगीत : सूतल रहलों रे अटरिया

bhojapuri lokgit ha sutal rahlon re atariya

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रोचक तथ्य

संदर्भ—स्वप्न-दर्शन और विचार।

सूतल रहलों रे अटरिया, सपन एक देखिले हो।

अरे हाइरे सासु सपनवा के करल बीचार,

सपन बड़ सुन्नर हो।।1।।

गइया के देखलों बछरुआ संगे, बाभाना जनेउवा संगे हो।

कि हाई रे सासु आँगाना में देखलों रे कलसवा,

अमवा घवद फरे हो।।2।।

गइया हवे लछिमिया बाभाना नारायन हो।

हाइरे बहुआ कलसवा तोर एहबात,

अमवा संतति हवे रे।।3।।

मैं अटारी पर सो रही थी, तभी मैंने एक स्वप्न देखा। हे सास जी! आप स्वप्न का विचार कीजिए। मुझको तो लगता है कि स्वप्न बहुत अच्छा है।।1।।

हे सास जी! मैंने स्वप्न में गाय को अपने बछड़े के साथ और ब्राह्मण को जनेऊ के साथ देखा। इतना ही नहीं, प्रत्युत मैंने आँगन में जल से भरा हुआ घड़ा और आम के वृक्ष को आम के घौद से लदा हुआ देखा (ज़रा आप विचार कर स्वप्न का फल कहिए)।।2।।

सास ने विचार किया और फिर प्रसन्न होकर कहा—

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 85)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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