भोजपुरी लोकगीत : मैं तो तोरे गले को हार राजावा
bhojapuri lokgit ha main to tore gale ko haar rajawa
रोचक तथ्य
संदर्भ—पति के सौत लाने पर धर्मपत्नी की उक्ति।
मैं तो तोरे गले को हार राजावा,
काहे को लायो सवतिया।।1।।
जाहु मैं रहतीं बाँझ बँझिनियाँ,
तब आइति सवतिया।
राजावा हमरो दो-दो हैं लाल,
काहे को लायो सवतिया।।2।।
जब हम रहितीं लंगड़ लूली,
तब आइति सवतिया।
राजावा हमरो सोटा अहसन देह,
काहे को लायो सवतिया।।3।।
जब हम रहितीं काली कोइलिया,
तब आइति सवतिया।
राजावा हमरो लाले लाले गाल,
काहे को लायो सवतिया।।4।।
एक पति अपनी धर्मपत्नी के जीवित रहते दूसरी स्त्री ले आया। उसे देखकर पत्नी पूछती है कि हे पति! मैं तो आपके गले के हार की भाँति सदैव आपके साथ रहती और आपकी शोभा बढ़ाती हूँ। मैं अच्छी-भली सुंदरी हूँ। फिर आप मेरी सौत क्यों ले आए?।।1।।
यदि मैं वंध्या होती तो सौत आती तो भी कोई बात नहीं थी, मैं कुछ न कहती। हे स्वामी! हमारे तो एक नहीं, दो-दो पुत्र हैं, फिर सौत किसलिए ले आए?।।2।।
यदि मैं लँगड़ी-लूली होती तो सौत आती तो भी कोई बात नहीं थी, मैं आपसे कुछ न कहती, किंतु हे स्वामी! मेरी तो सोटा जैसी देह है, अच्छी भली लाठी की भाँति खड़ी होकर चलती-फिरती हूँ, फिर आप सौत क्यों ले आए?।।3।।
यदि मैं कोयल की तरह काली-कलूटी होती तो भी कोई बात थी, सौत आती। मुझे कोई आपत्ति न होती, किंतु हे स्वामी! मेरे तो लाल-लाल सुंदर गाल हैं। मैं सुंदरी हूँ, फिर आप मेरी सौत क्यों लाए? दुःख तो इस बात का है।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 139)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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