अवधी लोकगीत : माया कहइँ बेटी नियरे बिअहबइ

awadhi lokgit ha maya kahain beti niyre biahabai

रोचक तथ्य

संदर्भ—आत्मीयों की भवना।

माया कहइँ बेटी नियरे बिअहबइ, बाबा कहइँ दस कोस।

भइया कहइँ बहिनी कासी बिअहबइ भउजी कहइँ सरवार।।1।।

माया कहइँ बेटी नित उठि अनबइ, बाबा कहइँ छठि मास।

मइया कहइँ बहिनी काज-परोजन, भउजी कहइँ केस बात।।2।।

बाबा तौ देहेन अनधन सोनवा, माया जी लहर-पटोर।

भइया जी देहेन हासुल घोड़वा, भउजी महुरवा कै गाँठि।।3।।

चुकि-पुकि जइहइँ अनधन सोनवा, फटि जइहइँ लहर-पटोर।

मइया के घोड़वा प्रभु नग्न घुमइहहिं, भउजी अपजस होय।।4।।

कन्या के विवाह के संबंध में उसके परिवार के आत्मीय जनों की भावनाएँ भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। माता कहती है कि पुत्री को निकट ब्याहूँगी, पिता कहता कि दस कोस दूर, भाई काशी की बात कहता है और भाभी सरवार या सरयू पार काफ़ी दूर विवाह करने की बात कहती है।।1।।

माता कहती है कि पुत्री को प्रति दिन बुलाऊँगी, पिता कहता है—छह महीने में, भाई कहता कि काम-काज में और भाभी कहती है कि कैसी बात करते हो (कभी बुलाने की ज़रूरत नहीं है)।।2।।

विवाह हो जाने पर पिता ने अन्न, धन और सोना दिया, माता ने लहर पटोर, भाई ने असली बढ़िया घोड़ा दिया और भाभी ने ज़हर की गाँठ दी।।3।।

कन्या विचार करती है—अन्न, धन और सोना तो एक दिन ख़त्म हो जाएगा, लहर-पटोर फट जाएँगे, भाई का घोड़ा मेरे स्वामी नगर में घुमाएँगे, किंतु भाभी को तो अपयश ही मिलेगा।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 155)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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