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अवधी लोकगीत : गोकुला केरी ग्वालिनि

awadhi lokgit ha gokula keri gwalini

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रोचक तथ्य

संदर्भ—गोपाल गारी (दधि प्रसंग)।

गोकुला केरी ग्वालिनि—गोकुला केरी ग्वालिनि, मथुरइ बेंचन जात दही।

बीच मिलिगे कँधइया—-बीच मिलेगे कँधइया, माँगत दान दही रे दही।।1।।

तूरौ पाता कदम के—तूरौ पाता कदम के, चाखौ छाछ दही रे दही।

पाता लागे हैं झाँझा—पाता लागे हैं झाँझा, अँचरा मैं चाखौं दही रे दही।।2।।

अँचरा मोरा जूँठा—आँचरा मोरा जूँठा, लरिकन राल बही रे बही।

लरिका कहाँ पायो—लारिका कहाँ पायो, अबहीं तौ नारि नई रे नई।।3।।

घर माँ भइया भतिजवा—घर मैं भइया भतिजवा, उनहीं कै राल बही रे बही।

काँधा चढ़िगे कदम पै—काधा चढ़िगे कदम है, ग्वालिनि भागि गई रे गई।।4।।

गोकुल की एक ग्वालिन मथुरा दही बेचने जा रही थी। बीच मार्ग में श्रीकृष्ण मिल गए और दही माँगने लगे।।1।।

ग्वालिन ने कहा—कदंब के पत्ते तोड़िए और दही चखिए। श्रीकृष्ण ने कहा—पत्ते में झाँझा लगे हैं, मैं तो आँचल में दही चाखूँगा।।2।।

ग्वालिन ने कहा—मेरा आँचल जूठा है और लड़कों की लार बही हुई (लगी) है। श्रीकृष्ण ने पूछा—आपने लड़का कहाँ पाया अभी तो आप नई-नवेली स्त्री जान पड़ती हैं।।3।।

ग्वालिन ने उन्हें उत्तर दिया—मेरे घर में मेरे भाई और भतीजे हैं, उन्हीं की लार बही है। यह सुनकर श्रीकृष्ण कदंब पर चढ़ गए, तभी मौक़ा पाकर गोपी भाग गई।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 161)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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