अवधी लोकगीत : बाल-विवाह जनि करउ मोरे बाबा हो

avdhii lokagiit : baala-vivaah jani kar.u more baaba ho

रोचक तथ्य

संदर्भ—बाल-विवाह की निरर्थकता।

बाल-विवाह जनि करउ मोरे बाबा हो,

बाल बिवाह दुख कई खानि।

गइया से बछरू जोरउ मोरे बाबा हो,

मानहु बिनती हमारि।।1।।

बच्ची कइ करहु बियहवा बाबा हो,

मानहु बिनती हमारि।

एहि रे बियहवा पइ देखि लेहु बाबा हो,

दुनिया कइ सबघर भार।।2।।

जब बेटी होइहैं सयानि मोरे बाबा हो,

खोजेउ सयान बर जाइ।

धरम-करम अउ सेवा सतकरवा हो,

देसवा कई जानैं बेउहार।।3।।

पढ़ि-लिखि गुन-ढंग सिखि लेहि बाबा हो,

तब किहेउ बेटी कइ बियाह।

बाल बियहवा से देश नास भइले,

डगमग डोलति है नाव।।4।।

शिक्षिता पुत्री ने अपने पिता को समझाया—हे मेरे पिताजी! बाल-विवाह मत कीजिए। वहु दुःख की खान होता है। गाय से बछड़ा मत जोड़िए, मेरी विनय मानिए।।1।।

हे पिताजी! अल्पवयस्का पुत्री का विवाह कीजिए, मेरी विनती मानिए। इस विवाह पर दुनिया का संपूर्ण भार निर्भर करता है।।2।।

हे पिताजी। जब पुत्री सयानी हो जाए तो सयाना वर खोजिएगा जिससे वह धर्म-कर्म, सेवा-सत्कार और देश का व्यवहार जाने।।3।।

हे पिताजी! पुत्री जब पढ़-लिखकर गुन-ढंग सीख ले तब उसका विवाह कीजिएगा। बाल-विवाह से देश नष्ट हो गया और उसकी नाव डगमग डोल रही है।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 158)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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