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अरे-अरे कारे भंवरवा

are are kare bhanvarva

अज्ञात

अज्ञात

अरे-अरे कारे भंवरवा

अज्ञात

और अधिकअज्ञात

    अरे-अरे कारे भंवरवा, करिय तोहरी जतिया

    भंवरा लेउ हरदिया के गाँठि नेवति पहुँचावउ।

    नेवतेउ अरिगन परिगन, माई के नइहर, मोर ननियाउर

    भंवरा एक नहिं नेवतेउ बिरन भइया, जिनसे में रूठल।

    आइ गये अरिगन परिगन, माई के नइहर।

    मोर ननियाउर

    एक नहिं नेवतेऊँ विरन भइया, जिनसे में रूठल।

    सासु भेटहूँ आपन भइया, ननदी बिरन भइया

    अरे मोरि बजर कई छतिया बिहरइ

    केहि उठि भेंटऊँ।

    अरे-अरे कारे भँवरवा करिय तोहरी जतिया

    भँवरा फेरि से नेवति पहुँचावउ, विरन भइया आवईं।

    बाहर से भइया भितर गये, घना से अरज करें

    घना बहिनी के परल विअहवा, नेवते चले होई।

    चुनरी हमरी फाटि गइ, कंगना जे टूटि गये

    राजा बहिनी के परल बियहवा, नेवते नहिं जाबइ।

    कंगना तोहरा गढ़ाइ देबै, चुनरी रंगाई देबै

    घना बहिनी के परल बियहवा, नेवते हम जाबइ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : पूर्वांचल के लोकगीत (पृष्ठ 16)
    • संपादक : बी.एल.द्विवेदी, कपिल तिवारी और नवल शुक्ल
    • प्रकाशन : मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद्, भोपाल का प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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