सच्ची वीरता

sachchi wirata

सरदार पूर्ण सिंह

सरदार पूर्ण सिंह

सच्ची वीरता

सरदार पूर्ण सिंह

और अधिकसरदार पूर्ण सिंह

     

     

    सच्चे वीर पुरुष धीर-गंभीर और आज़ाद होते हैं। उनके मन की गंभीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी, या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते। रामायण में वाल्मीकिजी ने कुंभकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न दिखलाया है। सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्त्वगुण के क्षार-समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की ख़बर ही नहीं होती। वे संसार के सच्चे परोपकारी होते हैं। ऐसे लोग दुनिया के तख़्ते को अपनी आँख की पलकों से हलचल में डाल देते हैं। जब ये शेर जागकर गरजते हैं, तब सदियों तक इनकी आवाज़ की गूँज सुनाई देती रहती है, और सब आवाज़ें बंद हो जाती हैं। वीर की चाल की आहट कानों में आती रहती है और कभी मुझे और कभी तुझे मदमत्त से हलचल करती है। कभी किसी की और कभी किसी की प्राणसारंगी वीर के हाथ से बजने लगती है।

    देखो हरा की कंदरा में एक अनाथ, दुनिया से छिपकर, एक अजीब नींद सोता है। जैसे गली में पड़े हुए पत्थर की ओर कोई ध्यान नहीं देता, वैसे ही आम आदमियों की तरह इस अनाथ को कोई न जानता था। एक उदारहृदया धनसंपन्ना स्त्री की वह नौकरी करता है। उसकी सांसारिक प्रतिष्ठा सिर्फ़ एक मामूली ग़ुलाम की सी है। पर कोई ऐसा दैवीय कारण हुआ जिससे संसार में अज्ञात उस ग़ुलाम की बारी आई। उसकी निद्रा खुली। संसार पर मानों हज़ारों बिजलियाँ गिरीं। अरब के रेगिस्तान में बारूद की सी झड़क उठी। उसी वीर की आँखों की ज्वाला इंद्रप्रस्थ से लेकर स्पेन तक प्रज्वलित हुई। उस अज्ञात और गुप्त हरा की कंदरा में सोनेवाले ने एक आवाज़ दी। सारी पृथ्वी भय से काँपने लगी। हाँ, जब पैगंबर मुहम्मद ने ‘अल्लाहो अकबर’ का गीत गाया तब कुल संसार चुप हो गया। और, कुछ देर बाद, प्रकृति उसकी आवाज़ की गूँज को सब दिशाओं में ले उड़ी। पक्षी ‘अल्लाह’ गाने लगे और मुहम्मद के पैगाम को इधर-उधर ले उड़े। पर्वत उसकी वाणी को सुनकर पिघल पड़े और नदियाँ ‘अल्लाह-अल्लाह’ का अलाप करती हुई पर्वतों से निकल पड़ीं। जो लोग उसके सामने आए वे उसके दास बन गए। चंद्र और सूर्य ने बारी-बारी से उठकर सलाम किया। उस वीर का बल देखिए कि सदियों के बाद भी संसार के लोगों का बहुत-सा हिस्सा उसके पवित्र नाम पर जीता है और अपने छोटे से जीवन को अति तुच्छ समझकर उस अनदेखे और अज्ञात पुरुष के, केवल सुने-सुनाए, नाम पर क़ुर्बान हो जाना अपने जीवन का सबसे उत्तम फल समझता है।

    सत्त्वगुण के समुद्र में जिनका अंतःकरण निमग्न हो गया वे ही महात्मा, साधु, और वीर हैं। वे लोग अपने क्षुद्र जीवन को परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिए संसार के सब अगम्य मार्ग साफ़ हो जाते हैं। आकाश उनके ऊपर बादलों के छाते लगाता है। प्रकृति उनके मनोहर माथे पर राज-तिलक लगाती हैं। हमारे असली और सच्चे राजा ये ही साधु पुरुष हैं। हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चाँदी से ज़र्क़ वर्क़ सिंहासन पर बैठनेवाले दुनिया के राजाओं को तो, जो ग़रीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिडोपजीवी होते हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है। ये ज़री, मख़मल और ज़ेवरों से लदे हुए माँस के पुतले तो हरदम काँपते रहते हैं। इंद्र के समान ऐश्वर्यवान और बलवान होने पर भी दुनिया के ये छोटे ‘जार्ज’ बड़े कायर होते हैं। क्यों न हो, इनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती। दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है। हाँ; जब कभी किसी अकबर का राज लोगों के दिलों पर होता है तब इन कायरों की बस्ती में मानो एक बच्चा वीर पैदा होता है।

    एक बाग़ी ग़ुलाम और एक बादशाह की बातचीत हुई। यह ग़ुलाम क़ैदी दिल से आज़ाद था। बादशाह ने कहा—“मैं तुमको अभी जान से मार डालूँगा। तुम क्या कर सकते हो?” ग़ुलाम बोला—हाँ, मैं फाँसी पर तो चढ़ जाऊँगा, पर तुम्हारा तिरस्कार तब भी कर सकता हूँ। बस इस ग़ुलाम ने दुनिया के बादशाहों के बल को हद दिखला दी। बस इतने ही ज़ोर और इतनी ही शेखी पर ये झूठे राजा शरीर को दुःख देते ओर मार-पीटकर अनजान लोगों को डराते हैं। भोले लोग उनसे डरते रहते है। चूँकि सब लोग शरीर को अपने जीवन का केंद्र समझते हैं। इसलिए जहाँ किसी ने उनके शरीर पर ज़रा ज़ोर से हाथ लगाया वहीं वे मारे डर के अधमरे हो जाते हैं, केवल शरीर-रक्षा के निमित्त ये लोग इन राजाओं की ऊपरी मन से पूजा करते हैं। जैसे ये राजा वैसा उनका सत्कार! जिनका बल शरीर को ज़रा सी रस्सी लटकाकर मार देने भर ही का है, भला, उनका ओर उन बलवान और सच्चे राजाओं का क्या मुक़ाबला जिनका सिंहासन लोगों के हृदय-कमल की पखड़ियों पर है? सच्चे राजा अपने प्रेम के ज़ोर से लोगों के दिलों को सदा के लिए बाँध देते हैं। दिलों पर हुकूमत करनेवाली फ़ौज, तोप, बंदूक आदि के बिना ही वे शाहशाह-ज़माना होते हैं। 

    The hero is a mind of such balance that no disturbances can shake his will, but pleasantly and as if it were imerrily, he advances to his own music, alikein frightful alarms and in the tipsy mists of universal dissoluteness.1

    मंसूर ने अपनी मौज में आकर कहा—मैं ख़ुदा हूँ। दुनिया के बादशाह ने कहा—यह काफ़िर है। मगर मंसूर ने अपने कलाम को बंद न किया। पत्थर मार मारकर दुनिया ने उसके शरीर की बुरी दशा की; परंतु उस मर्द के हर बाल से ये ही शब्द निकले—अनलहक—अहं ब्रह्मास्मि, मैं ही ब्रह्म हूँ। सूली पर चढ़ना मंसूर के लिए सिर्फ़ खेल था। बादशाह ने समझा कि मंसूर मारा गया।

    शम्स तबरेज़ को भी ऐसा ही काफ़िर समझकर बादशाह ने हुक्म दिया कि इसकी खाल उतार दो। शम्स ने खाल उतारी और बादशाह को, दरवाज़े पर आए हुए कुत्ते की तरह भिखारी समझकर, यह खाल खाने के लिए दे दी। देकर यह ग़ज़ल बराबर गाता रह—“भीख माँगनेवाला तेरे दरवाज़े पर आया है; ऐ शाहेदिल! कुछ इसको दे दे।“ खाल उतारकर फेंक दी! वाह रे सत्पुरुष!

    भगवान शंकर जब गुजरात की तरफ़ यात्रा कर रहे थे तब एक कापालिक हाथ जोड़े सामने आकर खड़ा हुआ। भगवान ने कहा—माँग, क्या माँगता है?” उसने कहा—हे भगवन! आजकल के राजा बड़े कंगाल हैं। उनसे अब हमें दान नहीं मिलता। आप ब्रह्मज्ञानी और सबसे बड़े दानी हैं। इसलिए मैं आपके पास आया हूँ। आप कृपा करके मुझे अपना सिर दान करें जिसकी भेंट चढ़ाकर मैं अपनी देवी को प्रसन्न करूँगा और अपना यज्ञ पूरा करूँगा। भगवान ने मौज में आकर कहा—अच्छा, कल यह सिर उतारकर ले जाना और काम सिद्ध कर लेना।

    एक दफ़े दो वीर पुरुष अकबर के दरबार में आए। वे लोग रोज़गार की तलाश में थे। अकबर ने कहा—“अपनी-अपनी वीरता का सुबूत दो। बादशाह ने कैसी मूर्खता की। वीरता का भला वे क्या सुबूत देते? परंतु दोनों ने तलवारें निकाल लीं और एक दूसरे के सामने कर उनको तेज़ धार पर दौड़ गए और वही राजा के सामने क्षण भर में अपने ख़ून में ढेर हो गए।

    ऐसे दैवी वीर रुपया; पैसा, माल, धन का दान नहीं दिया करते। जब वे दान देने की इच्छा करते हैं तब अपने आपको हवन कर देते हैं। बुद्ध महाराज ने जब एक राजा को मृग मारते देखा तब अपना शरीर आगे कर दिया जिसमें मृग बच जाए, बुद्ध का शरीर चाहे चला जाए। ऐसे लोग कभी बड़े मौक़ों का इंतज़ार नहीं करते, छोटे मौक़ों को ही बड़ा बना देते हैं।

    जब किसी का भाग्योदय हुआ और उसे जोश आया तब जान लो कि संसार में एक तूफ़ान आ गया। उसकी चाल के सामने फिर कोई रुकावट नहीं आ सकती। पहाड़ों की पसलियाँ तोड़कर ये लोग हवा के बगोले की तरह निगल जाते हैं, उनके बल का इशारा भूचाल देता है और उनके दिल की हरकत का निशान समुद्र का तूफ़ान देता है। क़ुदरत की और कोई ताक़त उनके सामने फटक नहीं सकती। सब चीज़ें थम जाती हैं। विधाता भी साँस रोककर उनकी राह को देखता है। यूरोप में जब रोम के पोप का ज़ोर बहुत बढ़ गया था तब उसका मुक़ाबला कोई भी बादशाह न कर सकता था। पोप की आँखों के इशारे से यूरोप के बादशाह तख़्त से उतार दिए जा सकते थे। पोप का सिक्का यूरोप के लोगों पर ऐसा बैठ गया था कि उसकी बात को लोग ब्रह्म वाक्य से भी बढ़कर समझते थे और पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे। लाखों ईसाई साधु-संन्यासी और यूरोप के तमाम गिरजे पोप के हुक्म की पाबंदी करते थे। जिस तरह चूहे की जान चिल्ली के हाथ में होती है उसी तरह पोप ने यूरोप वासियों की जान आपने हाथ में कर ली थी। इस पोप का बल और आतंक बड़ा भयानक था। मगर जर्मनी के एक छोटे से मंदिर के एक कंगाल पादरी की आत्मा जल उठी। पोप ने इतनी लीला फैलाई थी कि यूरोप में स्वर्ग और नरक के टिकट बड़े-बड़े दामों पर बिकते थे। टिकट बेच बेचकर यह पोप बड़ा विषयी हो गया था। लूथर के पास जब टिकट बिक्री होने को पहुँचे तब उसने पहले एक चिट्ठी लिखकर भेजी कि ऐसे काम झूठे तथा पापमय हैं और बंद होने चाहिए। पोप ने इसका जवाब दिया—लुथर! तुम इस गुस्ताख़ी के बदले आग में ज़िंदा जला दिए जाओगे। इस जवाब से लुथर की आत्मा की आग और भी भड़की। उसने लिखा—“अब मैंने अपने दिल में निश्चय कर लिया है कि तुम ईश्वर के तो नहीं किंतु शैतान के प्रतिनिधि हो। अपने आपको ईश्वर के प्रतिनिधि कहनेवाले मिथ्यावादी! जब मैंने तुम्हारे पास सत्यार्थ का संदेश भेजा तब तुमने आग और जल्लाद के नामों से जवाब दिया। इससे साफ़ प्रतीत होता है कि तुम शैतान की दलदल पर खड़े हो, न कि सत्य की चट्टान पर। यह लो तुम्हारे टिकटों के गट्ठे मैंने आग में फेंके। जो मुझे करना था मैंने कर दिया जो अब तुम्हारी इच्छा हो करो। मैं सत्य की चट्टान पर खड़ा हूँ। इस छोटे संन्यासी ने वह तूफ़ान यूरोप में पैदा कर दिया जिसकी एक लहर से पोप का सारा जंगी बेड़ा चकनाचूर हो गया। तूफ़ान में एक तिनके की तरह वह न मालूम कहाँ उड़ गया।

    महाराज रणजीत सिंह ने फ़ौज से कहा—अटक के पार जाओ” अटक चढ़ी हुई थी और भयंकर लहरें उठी हुई थीं। जब फ़ौज ने कुछ उत्साह प्रकट न किया तब उस वीर को ज़रा जोश आया। महाराज ने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया। कहा जाता है कि अटक सूख गई और सब पार निकल गए।

    दुनिया में जंग के सब सामान जमा हैं। लाखों आदमी मरने-मारने को तैयार हो रहे हैं। गोलियाँ पानी की बूँदों की तरह मूसलधार बरस रही हैं। यह देखो, वीर को जोश आया। उसने कहा—हाल्ट (ठहरो)। तमाम फ़ौज निःस्तब्ध होकर सकते की हालत में खड़ी हो गई। आल्प्स के पहाड़ों पर फ़ौज ने चढ़ना ज्योंही असंभव समझा, त्योंही वीर ने कहा—आल्प्स है ही नहीं! फ़ौज को निश्चय हो गया कि आल्प्स नहीं है और सब लोग पार हो गए!

    एक भेड़ चरानेवाली और सतोगुण में डूबी हुई युवती कन्या के दिल में जोश आते ही कुल फ़्रांस एक भारी शिकस्त से बच गया।

    अपने आपको हर घड़ी और हर पल महान से भी महान बनाने का नाम वीरता है। वीरता के कारनामे तो एक गौण बात हैं। असल वीर तो इन कारनामों को अपनी दिनचर्या में लिखते भी नहीं। पेड़ तो ज़मीन से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे यह ख़याल ही नहीं होता कि मुझमें कितने फल वा फूल लगेंगे और कब लगेंगे। उसका काम तो अपने आपको सत्य में रखना है सत्य को अपने अंदर कूट कूटकर भरना है और अंदर ही अंदर बना है। उसे इस चिंता से क्या मतलब कि कौन मेरे फल खाएगा था मैंने कितने फल लोगों को दिए।

    वीरता का विकास नाना प्रकार से होता है। कभी तो उसका विकास लड़ने मरने में, ख़ून बहाने में, तलवार-तोप के सामने जान गँवाने में होता है। कभी प्रेम के मैदान में उसका झंडा खड़ा होता है। कभी जीवन के गूढ़ तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध जैसे राजा विरक्त होकर वीर हो जाते हैं। कभी किसी आदर्श पर और कभी किसी पर वीरता अपना फरहरा लहराती है। परंतु वीरता एक प्रकार का इलहाम या दैवी प्रेरणा है। जब कभी इसका विकास हुआ तभी एक नया कमाल नज़र आया; एक नया जलाल पैदा हुआ; एक नई रौनक, एक नया रंग, एक नई बहार, एक नई प्रभुता संसार में छा गई। वीरता हमेशा निराली और नई होती हैं। नयापन भी वीरता का एक ख़ास रंग है। हिंदुओं के पुराणों की वह आलंकारिक कल्पना जिससे पुराणकारों ने ईश्वरावतारों को अजीब-अजीब और भिन्न-भिन्न वेष दिए हैं, सच्ची मालूम होती है। क्योंकि वीरता का एक विकास दूसरे विकास से कभी किसी तरह मिल नहीं सकता। वीरता की कभी नकल नहीं हो सकती; जैसे मन की प्रसन्नता कभी कोई उधार नहीं ले सकता। वीरता देशकाल के अनुसार संसार में जब कभी प्रकट हुई तभी एक नया स्वरूप लेकर आई, जिसके दर्शन करते ही सब लोग चकित हो गए कुछ बन न पड़ा और वीरता के आगे सिर झुका दिया।

    जापानी वीरता की मूर्ति पूजते हैं। इस मूर्ति का दर्शन वे चेरी के फूल की शांत हँसी में करते हैं। क्या ही सच्ची और कौशलमयी पूजा है! वीरता सदा ज़ोर से भरा हुआ ही उपदेश नहीं करती। वीरता कभी-कभी हृदय की कोमलता का भी दर्शन करती है। ऐसी कोमलता देखकर सारी प्रकृति कोमल हो जाती है। ऐसी सुंदरता देखकर लोग मोहित हो जाते हैं। जब कोमलता और सुंदरता के रूप में वह दर्शन देती है तब चेरी-फूल से भी ज़्यादा नाज़ुक और मनोहर होती है। जिस शख़्स ने युरोप को 'क्रूसेड्ज' के लिए हिला दिया वह उन सबसे बड़ा वीर था जो लड़ाई में लड़े थे। इस पुरुष में वीरता ने आँसुओं और आहों का लिबास लिया। देखो, एक छोटा सा मामूली आदमी यूरोप में जाकर रोता है कि हाय हमारे तीर्थ हमारे वास्ते खुले नहीं और यहूद के राजा यूरोप के यात्रियों को दिक करते हैं। इस आँसू-भरी अपील को सुनकर सारा यूरोप उसके साथ रो उठा। यह आला दरजे की वीरता है।

    बुलबुल की छाया को बीमार लोग सब दवाइयों से बढ़कर समझते थे। उसके दर्शनों ही से कितने बीमार अच्छे हो जाते थे। वह अव्वल दर्जे का सच्चा पक्षी है जो बीमारों के सिरहाने खड़ा होकर दिन-रात ग़रीबों की निष्काम सेवा करता है और गंदे ज़ख्मों को ज़रूरत के वक़्त अपने मुख से चूसकर साफ़ करता है। लोगों के दिलों पर ऐसे प्रेम राज्य अटल है। यह वीरता पर्दानशीन हिंदुस्तानी औरत की तरह चाहे कभी दुनिया के सामने न आए, इतिहास के वर्कों के कालेहर्फ़ों में न आए, तो भी संसार ऐसे ही बल से जीता है। वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है। उसका मन सबका मन हो जाता है। उसके ख़्याल सबके ख़्याल हो जाते हैं। सबके संकल्प उसके संकल्प हो जाते हैं। उसका बल सबका बल हो जाता है। वह सबका और सब उसके हो जाते हैं। 

    वीरों के बनाने के कारख़ाने क़ायम नहीं हो सकते। वो तो देवदार के दरख़्तों की तरह जीवन के अरण्य में ख़ुद-ब-ख़ुद पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए। बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए, तैयार होते हैं। दुनिया के मैदान में अचानक ही सामने आकर वे खड़े हो जाते हैं, उनका सारा जीवन भीतर ही भीतर होता है। बाहर तो जवाहिरात की खानों की ऊपरी ज़मीन की तरह कुछ भी दृष्टि में नहीं पाता। वीर की ज़िंदगी मुश्किल से कभी-कभी बाहर नज़र आती है। उसका स्वभाव तो छिपे रहने का है। 

    I was a gem concealed,2

    (वह लाल गुदड़ियों के भीतर छिपा रहता है।) 

    कंदराओं में, गोरों में, छोटी छोटी झोपड़ियों में बड़े बड़े वीर महात्मा छिपे रहते हैं। पुस्तकों और अख़बारों को पढ़ने से या विद्वानों के व्याख्यानों को सुनने से तो बस ड्राइंग-हॉल के वीर पैदा होते हैं, उनकी वीरता अनजान लोगों से अपनी स्तुति सुनने तक ख़त्म हो जाती है। असली वीर तो दुनिया की बनावट और लिखावट के मखौलों के लिए नहीं जीते।

    It is not in your markets that the heroes carry their bloo3

    हर बार दिखाव और नाम की ख़ातिर छाती ठोंककर आगे बढ़ना और फिर पीछे हटना पहले दरज़े की बुज़दिली है। वीर तो यह समझता है कि मनुष्य का जीवन एक ज़रा-सी चीज़ है। वह सिर्फ़ एक बार के लिए काफ़ी है। मानो इस बंदूक़ में एक ही गोली है। हाँ, कायर पुरुष इसको बड़ा ही क़ीमती और कभी न टूटनेवाला हथियार समझते हैं। हर घड़ी आगे बढ़कर, और यह दिखाकर कि हम बड़े हैं, वे फिर पीछे इस ग़रज़ से हट जाते हैं कि उनका अनमोल जीवन किसी और अधिक बड़े काम के लिए बच जाए। बादल ग़रज़ ग़रज़कर ऐसे ही चले जाते हैं, परंतु बरसनेवाले बादल ज़रा देर में बारह इंच तक बरस जाते हैं।

    कायर पुरुष कहते हैं—आगे बढ़े चलो। वीर कहते हैं—पीछे हटे चलो। कायर कहते हैं—उठाओ तलवार। वीर कहते हैं—सिर आगे करो। वीर का जीवन प्रकृति ने अपनी शक्तियों को फ़ज़ूल खो देने के लिए नहीं बनाया है। वीर पुरुष का शरीर क़ुदरत की कुल ताक़तों का भंडार है। क़ुदरत का यह मरकज़ हिल नहीं सकता। सूर्य का चक्कर हिल जाए तो हिल जाए, परंतु वीर के दिल में जो दैवी केंद्र है वह अचल है। क़ुदरत के और पदार्थों की पालिसी चाहे आगे बढ़ने की होः अर्थात् अपने बल को नष्ट करने की हो, मगर वीरों की पॉलिसी बल को हर तरह इकट्ठा करने और बढ़ाने की होती है। वीर तो अपने अंदर ही 'मार्च' करते हैं, क्योंकि हृदयाकाश के केंद्र में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते हैं। बेचारी मरियम का लाड़ला, ख़ूबसूरत जवान, अपने मद में मतवाला और अपने आपको शाहंशाह हक़ीक़ी कहनेवाला ईसा मसीह क्या उस समय कमज़ोर मालूम होता है जब भारी सलीब पर उठकर कभी गिरता, कभी ज़ख़्मी होता और कभी बेहोश हो जाता है? कोई पत्थर मारता है, कोई ढेला मारता है, कोई थूकता है, मगर उस मर्द का दिल नहीं हिलता। कोई क्षुद्रहृदय और कायर होता तो अपनी बादशाहत के बल की गुत्थियाँ खोल देता; अपनी ताक़त को नष्ट कर देता, और संभव है कि एक निगाह से उस सल्तनत के तख़्ते को उलट देता और मुसीबत को टाल देता, परंतु जिसको  हम मुसीबत जानते हैं उसको वह मखौल समझता था। सूली मुझे है, सेज पिया की, सोने दो मीठी-मीठी नींद है आती। मगर ईसा को भला दुनिया के विषय-विकार में डूबे लोग क्या जान सकते थे? अगर चार चिड़ियाँ मिलकर, मुझे फाँसी का हुक्म सुना दें और मैं उसे सुनकर रो दूँ या डर जाऊँ तो मेरा गौरव चिड़ियों से भी कम हो जाए। जैसे चिड़ियाँ, मुझे फाँसी देकर उड़ गईं, वैसे ही बादशाह और बादशाहतें आज ख़ाक में मिल गई हैं। सचमुच ही वह छोटा-सा बाबा लोगों का सच्चा बादशाह है। चिड़ियाँ और जानवरों की कचहरियों के फैसलों से जो डरते या मरते हैं वे मनुष्य नहीं हो सकते। राणाजी ने ज़हर के प्याले से मीराबाई को डराना चाहा। मगर वाह री सचाई! मीरा ने उस ज़हर को भी अमृत मानकर पी लिया। वह शेर और हाथी के सामने की गई, मगर वाह रे प्रेम! मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया। इस वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं। भीतर ध्यान करते हैं। मारते नहीं, मरते हैं।

    वह वीर क्या जो टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट ठंडा हो जाता है। सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हज़ारों वर्ष बर्फ़ उस पर जमती रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक ठंडी हो। उसे ख़ुद गरम और सरद होने से क्या मतलब? कारलायल को जो आजकल की सभ्यता पर गुस्सा आया तो दुनिया में एक नई शक्ति और एक नई जवान पैदा हुई। कारलायल अँग्रेज़ ज़रूर है, पर उसकी बोली सबसे निराली है। उसके शब्द मानो आग को चिनगारियाँ हैं जो आदमी के दिलो में आग सी लगा देती हैं। सब कुछ बदल जाए मगर कारलायल की गर्मी कभी कम न होगी। यदि हज़ार वर्ष संसार में दुखड़े और दर्द रोए जाएँ तो भी बुद्धि को शांति और दिल को ठंडक एक दर्जा भी इधर-उधर न होगी। यहाँ आकर भौतिक विज्ञान के नियम रो देते हैं। हज़ारों वर्ष आग जलती रहे तो भी थर्मामीटर जैसा का तैसा ही रहेगा। बाबीर के सिपाहियों ने और लोगों के साथ गुरु नानक को भी बेगार में पकड़ लिया। उनके सिर पर बोझ रखा और कहा—चलो। आप चल पड़े। दौड़, धूप, बोझ, मुसीबत, बेगार में पकड़ी हुई स्त्रियों का रोना, शरीफ़ लोगों का दुःख, गाँव के गाँव का जलना सब क़िस्म की दुखदाई बातें हो रही हैं। मगर किसी का कुछ असर नहीं हुआ। गुरु नानक ने अपने साथी मर्दाना से कहा—सारंगी बजाओ, हम गाते हैं। उस भीड़ में सारंगी बज रही है और आप गा रहे हैं। वाह री शांति।

    अगर कोई छोटा-सा बच्चा नेपोलियन के कंधे पर चढ़कर उसके सिर के बाल खींचे तो क्या नेपोलियन इसको अपनी बेइज्जती समझकर उस बालक को ज़मीन पर पटक देगा, जिसमें लोग उसको बड़ा वीर कहें? इसी तरह सच्चे वीर जब उनके बाल दुनिया की चिड़ियाँ नोचती हैं तब कुछ परवा नहीं करते, क्योंकि उनका जीवन आसपास वालों के जीवन से निहायत ही बढ़-चढ़कर ऊँचा और बलवान होता है। भला ऐसी बातों पर वीर कब हिलते हैं। जबी उनकी मौज आई तभी मैदान उनके हाथ है।

    जापान के एक छोटे से गाँव की एक झोपड़ी में छोटे क़द का एक जापानी रहता था। उसका नाम ओशियो था। यह पुरुष बड़ा अनुभवी और ज्ञानी था। बड़े कड़े मिज़ाज का, स्थिर, धीर और अपने ख़यालात के समुद्र में डूबा रहनेवाला पुरुष था। आसपास रहनेवाले लोगों के लड़के इस साधु के पास आया-जाया करते थे और यह उनको मुफ़्त पढ़ाया करता था। जो कुछ मिल जाता वही खा लेता था। दुनिया की व्यावहारिक दृष्टि से वह एक क़िस्म का निखट्टू था, क्योंकि इस पुरुष ने संसार का कोई बड़ा काम नहीं किया था। इसको सारी उम्र शांति और सत्त्वगुण में गुज़र गई थी। लोग समझते थे कि वह एक मामूली आदमी है। एक दफ़ा इत्तिफ़ाक़ से दो-तीन फ़सलों के न होने से इस फ़क़ीर के आसपास के मुल्क में दुर्भिक्ष पड़ गया। दुर्भिक्ष बड़ा भयानक था। लोग बड़े दुःखी हुए। लाचार होकर इस नंगे, कंगाल फ़क़ीर के पास मदद माँगने आए। उसके दिल में कुछ ख़्याल हुआ। उनकी मदद करने को वह तैयार हो गया। पहले वह ओसाको नामक शहर के बड़े-बड़े धनाढ्य और भद्र पुरुषों के पास गया और उनसे मदद माँगी। इन भलेमानसों ने वादा तो किया, पर उसे पूरा न किया। ओशियो फिर उनके पास कभी न गया। उसने बादशाह के वजीरों को पत्र लिखे कि इन किसानों को मदद देनी चाहिए। परंतु बहुत दिन गुज़र जाने पर भी जवाब न आया। ओशियो ने अपने कपड़े और किताबें नीलाम कर दी। जो कुछ मिला, मुट्ठी भरकर उन आदमियों की तरफ़ फेंक दिया। भला इससे क्या हो सकता था? परंतु ओशियो का दिल इससे पूर्ण शिव रूप हो गया। यहाँ इतना ज़िक्र कर देना काफ़ी होगा कि जापान के लोग अपने बादशाह को पिता की तरह पूजते हैं। उनके हृदय की यह एक वासना है। ऐसी कौम के हज़ारों आदमी इस वीर के पास जमा हैं। ओशियो ने कहा, सब लोग हाथ में बाँस लेकर तैयार हो जाओ और बग़ावत का झंडा खड़ा कर दो। कोई भी चूँ वा चरा न कर सका। बग़ावत का झंडा खड़ा हो गया। ओशियो एक बाँस पकड़कर सबके आगे किओटो जाकर बादशाह के क़िले पर हमला करने के लिए चला। इस फ़क़ीर जनरल की फ़ौज की चाल कौन रोक सकता था? जब शाही क़िले के सरदार ने देखा तब उसने रिपोर्ट की और आज्ञा माँगी कि ओशियो और उसकी बाग़ी फ़ौज पर बंदूक़ों की बाढ़ छोड़ी जाए? हुक्म हुआ कि “नहीं, ओशियो तो क़ुदरत के सब्ज़ वर्कों को पढ़नेवाला है। वह किसी ख़ास बात के लिए चढ़ाई करने आया होगा। उसको हमला करने दो और आने दो। जब ओशियो क़िले में दाख़िल हुआ तब वह सरदार इस मस्त जनरल को पकड़कर बादशाह के पास ले गया। उस वक़्त ओशियो ने कहा—“वे राजभंडार, जो अनाज से भरे हुए हैं, ग़रीबों की मदद के लिए क्यों नहीं खोल दिए जाते?”

    जापान के राजा को डर-सा लगा। एक वीर उसके सामने खड़ा था, जिसकी आवाज़ में दैवी शक्ति थी। हुक्म हुआ कि शाही भंडार खोल दिए जाएँ और सारा अन्न दरिद्र किसानों को बाँटा जाए। सब सेना और पुलिस धरी की धरी रह गई। मंत्रियों के दफ़्तर लगे के लगे रहे। ओशियो ने जिस काम पर कमर बाँधी उसको कर दिखाया। लोगों की विपत्ति कुछ दिनों के लिए दूर हो गई। ओशियो के हृदय की सफ़ाई, सचाई और दृढ़ता के सामने भला कौन ठहर सकता था? सत्य की सदा जीव होती है। यह भी वीरता का एक चिह्न है। रूस के जार ने सब लोगों को फाँसी दे दी। किंतु टाल्सटाय को वह दिल से प्रणाम करता था उनकी बातों का आदर करता था। जय वहीं होती है जहाँ कि पवित्रता और प्रेम है। दुनिया किसी कूड़े के ढेर पर नहीं खड़ी है कि जिस मुर्ग़ ने बाँग दी वही सिद्ध हो गया। दुनिया धर्म और अटल आध्यात्मिक नियमों पर खड़ी है। जो अपने आपको उन नियमों के साथ अभिन्नता करके खड़ा हुआ वह विजयी हो गया। आजकल लोग कहते हैं कि काम करो, काम करो। पर हमें तो ये बातें निरर्थक मालूम होती हैं। पहले काम करने का बल पैदा करो अपने अंदर ही अंदर वृक्ष की तरह बढ़ो। आजकल भारतवर्ष में परोपकार करने का बुखार फैल रहा है। जिसको 105 डिग्री का यह बुखार चढ़ा वह आजकल के भारतवर्ष का ऋषि हो गया। आजकल भारतवर्ष में अख़बारों की टकसाल में गढ़े हुए वीर दर्जनों मिलते हैं। जहाँ किसी ने एक-दो काम किए और आगे बढ़कर छाती दिखाई, तहाँ हिदुस्तान के सारे अख़बारों ने ‘हीरो’ और, ‘महात्मा’ की पुकार मचाई। बस एक नया वीर तैयार हो गया। ये तो पागलपन की लहरें हैं। अख़बार लिखनेवाले मामूली सिक्के के मनुष्य होते हैं। उनकी स्तुति और निंदा पर क्यों मरे जाते हो? अपने जीवन को अख़बारों के छोटे-छोटे पैराग्राफ़ों के ऊपर क्यों लटका रहे हो? क्या यह सच नहीं कि हमारे आजकल के वीरों की जानें अख़बारों के लेखों में है? जहाँ इन्होंने रंग बदला कि हमारे वीरों के रंग बदले, ओंठ सूखे और वीरता की आशाएँ टूट गई।

    प्यारे, अंदर के केंद्र की ओर अपनी चाल उलटो और इस दिखावटी और बनावटी जीवन की चंचलता में अपने आपको न खो दो। वीर नहीं तो वीरों के अनुगामी हों और वीरता के काम नहीं तो धीरे-धीरे अपने अंदर वीरता के परमाणुओं को जमा करो।

    जब हम कभी वीरों का हाल सुनते हैं तब हमारे अंदर भी वीरता की लहरें उठती हैं और वीरता का रंग चढ़ आता है। परंतु वह चिरस्थायी नहीं होता। इसका कारण सिर्फ़ यही है कि हमारे भीतर वीरता का मसाला तो होता नहीं। हम सिर्फ़ ख़ाली महल उसके दिखलाने के लिए बनाना चाहते हैं। टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केंद्र में निवास करो और सचाई की चट्टान पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ। अपनी ज़िंदगी किसी और के हवाले करो ताकि ज़िंदगी के बनाने की कोशिशों में कुछ भी वक़्त जाया न हो। इसलिए बाहर की सतह को छोड़कर जीवन के अंदर की तहों में घुस जाओ; तब नए रंग खुलेंगे। द्वेष और भेद-दृष्टि छोड़ो, रोना छूट जाएगा। प्रेम और आनंद से काम लो; शांति की वर्षा होने लगेगी और दुखड़े दूर हो जाएँगे। जीवन के तत्त्व का अनुभव करके चुप हो जाओ, धीर और गंभीर हो जाओगे। वीरों की, फ़क़ीरों की, पीरों की यह कूक है—हटो पीछे, अपने अंदर जाओ, अपने आपको देखो, दुनिया और की और हो जाएगी। अपनी आत्मिक उन्नति करो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी निबंधमाला (पहला भाग ) (पृष्ठ 192)
    • संपादक : श्यामसुंदर दास
    • रचनाकार : पूर्ण सिंह
    • प्रकाशन : नागरी प्रचारिणी सभा

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