हमारा ‘शस्य' उजड़ रहा है, पर्यावरण संतुलन बिगड़ने की वजह से मनुष्य ही विस्थापित नहीं रहे है, पशु-पक्षी भी विस्थापित हो रहे है, उजड़ रहे हैं, उनके व्यवहार बदल रहे है। प्रस्तुत उपन्यास इस उजाड़ में बदलते हुए उनके स्वभाव एवं व्यवहार के बारे में है। यह एक तरह से हमारे भयावह भविष्य की संकेत कथा है। पशु-पक्षी पूछते है कि शस्य कहाँ है, हरीतिमा कहाँ है और क्या उन्हें जीने का अधिकार नहीं है?