राजस्थानी साहित्य का महत्व इस प्रकार है: यह समृद्ध साहित्य पिछली शताब्दियों के सांस्कृतिक लोकाचार की पुष्टि करता है। यह उस समय की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में सटीक जानकारी देता है। यह बताता है कि कैसे देशी शासक और लोग अपनी संस्कृति के संरक्षण में विश्वास करते थे। यह कई रूपों और शैलियों में लिखा गया है। राजस्थान के प्राचीन कार्य चट्टानों, पत्थरों, सिक्कों और मुहरों पर नक्काशी और शिलालेखों के रूप में पाए गए हैं। लिखित रूप मुख्य रूप से मौखिक साहित्य के पारंपरिक तरीके से प्रेरित था। राजस्थानी साहित्य में आम लोगों द्वारा लोकप्रिय लोक शैली में लिखा गया साहित्य भी प्रचुर मात्रा में मौजूद है। यह साहित्य लोक गाथाओं, लोक नाटकों, प्रेम कथाओं, कहावतों, पहेलियों और लोकगीतों के रूप में मौजूद है। राजस्थान के प्रमुख साहित्यकारों द्वारा अपनी कलात्मक रचनाओं के माध्यम से देश की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने की महती कार्य किया है। यहाँ का साहित्यिक गौरव अन्य प्रांतीय भाषा के साहित्य हेतु गौरान्वित है। पश्चिमी राजस्थानी का मध्ययुगीन साहित्य समृद्ध है। प्राचीन राजस्थानी की साहित्यिक भाषा डिंगल है, जिसमें पर्याप्त चारण-साहित्य उपलब्ध है। "ढोला मारू रा दूहा" जैसे लोक-काव्यों ने और "बेलि क्रिसन रुकमणी री" जैसी अलंकृत काव्य कृतियों ने राजस्थानी की श्रीवृद्धि में योगदान दिया है।