इन कहानियों में आदमी के मनुष्य हो जाने की अनुभूतियों को जिस तरलता और सरलता से पिरोया गया है, वह सचमुच एक अदभुत पाठकानुभव है। कहानीकार के कथाकर्म का प्रतिनिधि एवं केंद्रीय स्वर, गहन आत्मीयता से यहाँ सामने लाया गया है। यह कथाकार की अपनी कथाभूमि तो है ही, लगता है, हम सबकी सगी दुनिया भी यही है। टूटती-ढहती और फिर से बनती-सँवरती दुनिया। मानवताकामी शुभेच्छा की यह आकांक्षा ही इस सीरीज़ की वह शक्ति है जो आज के तमाम चालू कथा- सीरीज़ों से इसे अलग खड़ा करती है। तो, प्रस्तुत हैं खुशवंत सिंह की दस प्रतिनिधि कहानियाँ।