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लेखक : श्री व्यथित हृदय

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : आदर्श ग्रंथमाना, प्रयाग

मूल : इलाहाबाद, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1933

भाषा : हिंदी

पृष्ठ : 87

सहयोगी : सरदार शहर पब्लिक लाइब्रेरी

दुलहिन के पत्र

पुस्तक: परिचय

यह स्त्री समाज में हलचल मचा कर जागृति पैदा करने वाली एक मौलिक कहानी है जिसमें लेखक अपनी कवित्तपूर्ण भाषा-शैली द्वारा यह दिखाने का सफल प्रयास करते हैं कि बीसवीं शताब्दी के इस उन्नत युग में भी बहुत से हिंदु परिवार ऐसे हैं जो स्त्री शिक्षा से वैसे ही भड़कते हैं, जैसे लाल या काला वस्त्र देख कर भैंस भड़कती है। इनके घरों में अगर कोई दुर्भाग्य की मारी पढ़ी-लिखी बहू चली आती है तो यह उसे चुड़ैल,डायन और मेम आदि वेशेषणों से विभूषित करते हुए, उसपर ऐसे अत्याचार आरंभ कर देते हैं, जिसे देखकर भीषणता भी काँप उठती है। लेखक दुल्हन के पत्रों के माध्यम से समाज में पढ़ी-लिखी बहुओं की इसी पीड़ा को व्यक्त करने की कोशिश करते हैं। इन मूर्खतापूर्ण कृत्यों में सासों,ननदों और जेठानियों की क्या भूमिका रहती है उसको भी लेखक कम शब्दों में बड़ी निपुणता से बताते चलते हैं।

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