क्षमा कौल का यह उपन्यास दर्दपुर उन सारे सवालों की गहनता से पड़ताल करती है दरअसल यह दर्दपुर जंक्शन है जो सभी दर्द और दुखों का संयोग है। इस पुस्तक को कश्मीरी पंडितों के निर्वासितों के दुख और दर्द को वयां करने वाला माना जाता है लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है कि यह एक स्त्रियों की सम्पूर्ण गाथा है उनके दुख दर्द और उनके प्रेम , त्याग और समर्पण पर क्षमा कौल की बेबाकी उद्वेलित करती है तो उनकी कोमल भाषा हमारे दुखों को मरहम लगाती हैं वहीं उनकी दार्शनिकता हमें कहीं गहरे ज्ञान लोक में उतारती हैं …यह उपन्यास इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कश्मीर पर हजारों ग्रंथ लिखे गए हैं लेकिन एक कश्मीरी महिला पीड़ित ने उसे किस सन्दर्भ में देखा , महसूसा और लिखा है इस मायने में यह एक अकेला और अलौकिक उपन्यास है जिसे पढ़ते वक्त आप न केवल कश्मीर को जी रहे होते हैं बल्कि आप उनकी पीड़ा को आँखों देखी महसूस रहे होते हैं। कश्मीरियों का निर्वासन विश्व का सबसे बङ़ा आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक जीनोसाइड है जिसके तहत एक ख़ास वर्ग या जाति को समूल नष्ट करने का प्रपंच रचा गया उसी देश में जहाँ की सरकारें कहती हैं कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है।