पुष्पिता के इस उपन्यास में सूरीनाम इस कदर जीवंत है कि इसे पढ़कर हमें उनकी लेखनी के ताकत का अहसास तो होता ही है साथ ही एकाधिक प्रसंगों में ऐसा लगता है मानों पुष्पिता हमें कलम से आँखें सटाकर सूरीनाम देखने का अवसर दे रही हैं। पुष्पिता के लेखन की यही चाक्षुषता उनके लेखन की ताकत है और यदि इस खूबी के आधार पर यदि कोई फिल्मकार उनकी रचना का फिल्मांकन करना चाहे तो बेहद सुविधाजनक महसूस करेगा।
हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली
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