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प्यास सहत पी सकत नहिं

pyas sahat pi sakat nahin

रसनिधि

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प्यास सहत पी सकत नहिं

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    प्यास सहत पी सकत नहिं, औघट घाटनि पान।

    गज की गरुवाई परी, गज ही के गर आन॥

    हाथी प्यास सह लेता है पर औघट अर्थात कम गहरे घाट में पानी नहीं पी सकता। इस प्रकार हाथी के बड़प्पन का दोष हाथी के गले ही पड़ा कि कम गहरे पानी से पानी नहीं पी सकता और प्यासा ही रहता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 296)
    • संपादक : टेकचंद शास्त्री
    • रचनाकार : रसनिधि
    • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
    • संस्करण : 1955

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