सबद संग्रह
गोरखनाथ के ‘सबदी’ को बाद के संत कवियों ने ‘सबद’ बना लिया। संतों की आत्मानुभूति ‘सबद’ कहलाती है। सबद गेय होते हैं और राग-रागिनियों में बंधे हुए होते हैं। ‘सबद’ का प्रयोग आंतरिक अनुभव-आह्लाद के व्यक्तीकरण के लिए किया जाता है।
गोरखनाथ के ‘सबदी’ को बाद के संत कवियों ने ‘सबद’ बना लिया। संतों की आत्मानुभूति ‘सबद’ कहलाती है। सबद गेय होते हैं और राग-रागिनियों में बंधे हुए होते हैं। ‘सबद’ का प्रयोग आंतरिक अनुभव-आह्लाद के व्यक्तीकरण के लिए किया जाता है।