माँ-बाप को पेरेंटिंग-ट्रेनिंग की ज़रूरत हैं

maan baap ko perenting training ki zarurat hain

ममता सिंह

ममता सिंह

माँ-बाप को पेरेंटिंग-ट्रेनिंग की ज़रूरत हैं

ममता सिंह

और अधिकममता सिंह

    अगर आपको लगता है कि पाँच छः साल के छोटे बच्चे प्राइवेट पार्ट्स के बारे में कुछ नहीं जानते वह इस बारे में किसी अपने हम उम्र से बात करते हैं तो आप एकदम ग़लत हैं। बच्चे बहुत क्यूरियस होते हैं और इतने समझदार भी कि माँ बाप को क्या और कितनी बात बतानी है...

    वह अपने माँ बाप से क्लास रूम की बात बताते हैं पर अक्सर स्कूल के वाशरूम में होने वाली बात छुपा लेते हैं चूँकि उन्हें जाने अनजाने में ही अच्छी बात/बुरी बात की समझ हो जाती है क्योंकि अगर उन्होंने कभी कुछ बताने की कोशिश की होती है तो उनके पेरेंट्स उन्हें डाँटते हुए कहते हैं बेटा यह गंदी बात है, यह सब कहाँ से सीखे, किन गंदे बच्चों के साथ तुम दोस्ती किए हो...नतीजे में बच्चा अपनी एक गोपनीय दुनिया बनाने लगता है...

    इस देश में डॉक्टर, इंजीनियर, मास्टर बनाने के लिए तो ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हैं पर माता पिता बनने से पूर्व कोई ख़ास मानसिक तैयारी की ज़रूरत नहीं समझी जाती, बस जाति, धर्म, गोत्र, दहेज देखकर दो अजनबियों की शादी करवा दो और शादी होने के दिन से ख़ुशख़बरी कब आएगी कि रट लगाकर बच्चे पैदा करवा दो नतीजतन ऐसे इमिच्योर माता पिता की फ़ौज यहाँ भरी पड़ी है जो बच्चों को खिलाने, घुमाने, पढ़ाने, पहनाने ओढ़ाने और ज़िद पूरी करने को ही गुड पेरेंटिंग समझते हैं...न उन्हें छोटे बच्चों की आंतरिक और गोपनीय दुनिया की जानकारी होती है किशोर बच्चों की दुरूह दुनिया की...

    बच्चा बड़ों से सेक्स संबंधी सवाल नहीं कर सकता, वह अपनी जिज्ञासाओं, उत्सुकताओं का शमन कहाँ और कैसे करे उसे नहीं पता... आज भी समाज भले प्रोग्रेसिव हो गया है पर जब बच्चा पूछता है कि मैं कहाँ से आया तो कोई माँ बाप उसे मंदिर से, कोई बाज़ार से, कोई अस्पताल से लाया बताते हैं पर वह असल में कहाँ से आया यह बताने भर की समझ पेरेंट्स में नहीं विकसित हुई है, हाँ बच्चा अपने आस-पास खुलेआम सेक्सिस्ट जोक, गालियाँ सुनता है, गर्भ निरोध के बड़े-बड़े होर्डिंग पोस्टर देखता है, टीवी में लगभग नंगी देहें देखता है पर कहीं उसने किसी शारीरिक अंग का नाम ले लिया तो वह गंदा बच्चा कहलाएगा...

    यह बहुत कमाल की बात है कि छोटे बच्चों को अपनी इमेज की फ़िक्र किसी वयस्क से अधिक होती है, आपने कई बार देखा होगा कि जब आप बच्चे की किसी बदमाशी या कोई गोपनीय बात किसी घर आए परिचित से बताने की कोशिश करते हैं तो बच्चा अनइज़ी हो उठता है, कई बार तो वह फ़ोर्सफ़ुली माँ बाप को रोकता है कि उसकी बातें किसी से नहीं बताई जाएँ, ज़ाहिर तौर पर वह हल्की फुल्की शरारतें ही होती हैं पर जब यहीं बातें उसे इंबेरेंस फ़ील कराती हैं तो प्राइवेट पार्ट्स और सेक्स से संबंधित बात उसे कितना शर्मिंदा करेंगी यह बच्चा अच्छे से जानता है सो वह अपनी एक गुप्त दुनिया बना लेता है,जिसके दरवाज़े पर बड़ों का प्रवेश वर्जित है लिखा होता है...

    और बड़े वह तो बने ही इसलिए हैं कि वह बच्चा पैदा करके उसके आगे आपस में लड़ते झगड़ते, रोते कलपते, एक दूसरे पर लापरवाह माँ या बाप होने की तोहमत लगाते या यह कहते हुए कि क्या कमी रह गई हमारी परवरिश में इतने महँगे स्कूल में पढ़ा रहे, अच्छे से अच्छा खिला रहे, पहना रहे, हर फ़रमाइश पूरी कर रहे और तुम हो कि गंदी बातें सीखते हो कहते हुए ज़िंदगी गुज़ार दें...

    मुझे लगता है इस देश में बच्चों पर आदर्शवाद थोपने से पहले उनके माँ बाप को चाइल्ड साइकोलॉजी पढ़ने और पेरेंटिंग की ट्रेनिंग की ज़रूरत है...

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