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आधुनिक काव्य

adhunik kavya

सुमित्रानंदन पंत

अन्य

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सुमित्रानंदन पंत

आधुनिक काव्य

सुमित्रानंदन पंत

और अधिकसुमित्रानंदन पंत

    सैकड़ों वर्ष पहले सूर, तुलसी, कबीर, मीरा के ज्ञान भक्ति द्रवित पदों ने, हिंदी कविता के प्रासाद को, अपनी भावमुग्ध चापों से मुखरित किया था, उनकी प्रतिध्वनियाँ आज भी हमारे कानों में गूँजती रहती है। हिंदी काव्यचेतना इतिहास की ऊँची-नीची सीढ़ियों पर चढ़ती उतरती हुई द्विवेदी-युग में खड़ीबोली के प्रांगण को जागरण के स्वरों से गुंजरित करती हुई, और अभी-अभी छायावाद की स्वप्नबीथी को मर्म मधुर चरणों से पार करती हुई आज जिस नवीन जीवन की भूमिका में प्रवेश कर रही है उसका आभास आपको तरुण हृदयों के उद्गारों एवं उनके तरुण कंठों की पुकारों में मिलेगा। आज ये हिंदी की प्राचीन काव्य-परंपरा को ही आगे बढ़ाकर उसे नवीन रूप से नहीं सँजो रहे हैं, विश्व-साहित्य से नवीन प्रेरणाएँ ग्रहण कर देश विदेशों के काव्य-वैभव को भी अपने उन्मुक्त स्वरों की तीव्र मंद झंकारों में प्रवाहित कर रहे हैं। इन नवीन कवियों की वाग्देवी युग मानव के लिए नवीन भाव भूमि तथा नवीन संगमतीर्थ प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रही है।

    हमारे तरुण कलाकारों के हृदयों में नए युग का सृजन संघर्ष चल रहा है। वे युग मानव के विचारों में नए क्षितिजों का प्रकाश, उसकी भावना में नए स्वप्नों का सौंदर्य, उसके हृदय की धड़कन में नई भू चेतना का संगीत गूँथना चाहते हैं। वे युग के राग विराग के उद्वेलन को अपनी वाणी के अनेक छोटे-बड़े इंगित आवर्ती में नचाकर उसमें नवीन मानवीय संतुलन भरना चाहते हैं। आज के युग के कलाकार ने जीवन की चुनौती को स्वीकार कर लिया है। वह उसका सामना करने को अधिक ग्रहणशील, अधिक आत्मचेतन तथा अधिक समृद्ध प्रतीत होता है। संदेह की जिज्ञासा से भरी उसकी प्रत्येक पल बदलती हुई मुखाकृति पर उसके भावप्रवण हृदय का संघर्ष घने रुपहले कुहासे की तरह मँडराता रहता है। उसकी संवेदनशील तथा उत्तेजनशील नाड़ियों का जीवन उसके हाव-भावों से फूटकर मन को स्पर्श करता रहता है। उसका उद्वेलित भाव जगत विद्रोह और आत्मविश्वास के गर्जन से भरे गहरे आर्द्र रंग के बादल की तरह घुमड़-घुमड़ उठता है जिसमें यत्र-तत्र आशा उल्लास के प्रेम और सौंदर्य के इंद्रधनुषी धब्बे जगमगा उठते हैं। जीवन की वास्तविकता का धूप-छाँह, उसका नैराश्य अवसाद, उसकी करुणा-ममता, सुख-दुख, मिलन-विछोह तथा उसकी गोपन आकांक्षाओं से आँखमिचौनी खेलते हुए उसकी वीणा के तार मर्म मुखर आवेशों में काँपते रहते हैं। पौ फटने का-सा एक नीरव दीप्त मार्दव उसके अंतर जगत में देखने को मिलता है, जिसके नई संभावनाओं के क्षितिजों में नई जीवन चेतना का प्रकाश जन्म ले रहा है।

    यह आधुनिक काव्य का तरल अतरंग है,—उसके बहिरंग में भी आपको अद्भुत मौलिकता तथा विचित्रता मिलेगी। उसके रूप विधान, अभिव्यक्ति, प्रतीक प्रतिमानों में सर्वत्र आपको नवीनता के दर्शन होंगे। प्राचीन काव्य में सुख, सौंदर्य, प्रेम तथा पूर्णता का प्रतीक स्वर्ग माना जाता था। नवीन काव्य में वह धरती बन गया है। आज का कलाकार धरती को ही स्वर्ग में बदलना चाहता है। वह जीवन के यथार्थ से विमुख होकर, उसमें जो तुच्छ, घृणित, कुरूप है उससे पलायन कर, दु.ख संघर्ष से आँख चुराकर मनुष्य को आस्था के लिए किसी काल्पनिक स्वर्ग की सृष्टि नहीं करना चाहता। वह मानव के सुख-सौंदर्य-कामी हृदय को अंतर्मुख भावना की लँगडाहट से मुक्त कर, उसे कठोर वास्तविकता की भूमि पर आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। वह देवों के बधिर श्रवणों के लिए प्रार्थनाएँ लिखकर मनुष्य को ही अपने मनुष्यत्व में भरा-पुरा बनने को ललकारता है। उसके लिए अब परिपूर्णता का प्रतीक देवत्व के स्थान पर मनुष्यत्व बन गया है। वह पदार्थ के भीतर से चेतना के गुणों की अभिव्यक्ति करना चाहता है। अदृश्य, सूक्ष्म आत्मा के बदले दृश्यमान आयामों की मिट्टी को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर, एवं आँधी तूफ़ान में कँपकर बुझ जाने वाली द्वीप-शिखा के बदले स्नेह की हथेली के समान मृण्यमय दीपक को ही प्रतिमान मानकर जीवन के बहुमुखी सत्य का उद्घाटन करना चाहता है। वह युग-युग के निषेधों तथा वर्जनाओं से भयभीत होकर, अपने आत्म-विश्वास से उन्हें अतिक्रम कर एवं ऊर्ध्व रीढ़, उन्नत मस्तक होकर, धरती के ऊबड़-खाबड़ पदार्थ को अपने दृढ़ पैरों के तले रौदता हुआ, उसे प्रशस्त, सर्वसुलभ, समतल वास्तविकता में बदल देना चाहता है।

    इस प्रकार उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति जीवन के अंचल में बँध गई है। उसकी भाषा बोलचाल के अधिक निकट आकर मर्मस्पर्शी बन गई है। भाव और अभिव्यक्ति के बीच अलंकरण का व्यवधान मिट गया है, या सरल सुबोध बन गया। छायावादी भाषा में आदर्शवादिता का संस्कार तथा बौद्धिकता के प्रकाश का निखार था, आधुनिक कविता की भाषा में भावना के आवेश की ऊष्णता, तथा हृदय की जीती-जागती धड़कन मिलती है। पिछले कवियों की शैली में सँवार-शृंगार रहता था, नवीन कवियों की शैली से उनका स्वभाव झलक उठता है। कहीं-कहीं उनकी भाषा में जनपदीय बोलियों की सहज स्वाभाविकता, मिठास, तथा अनगढ़ लालित्य गया है। सूक्ष्म कुहासे में झलमलाते हुए इंद्रधनुष के रंग, फूलों की स्पर्श-कोमल पंखड़ियों में बँधकर अधिक मूर्त हो उठे हैं। उनकी आशा-निराशा, घृणा-प्रेम, हास-अश्रु, संदेह-विश्वास तथा क्षोभ-विद्रोह सबका अपना विशेष मूल्य एवं महत्त्व है, क्योंकि वे युगजीवन की बदलती हुई निर्मम वास्तविकता को सच्चे रूप में प्रतिफलित तथा उद्घोषित करते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शिल्प और दर्शन द्वितीय खंड (पृष्ठ 286)
    • रचनाकार : सुमित्रा नंदन पंत
    • प्रकाशन : नव साहित्य प्रेस
    • संस्करण : 1961

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