कविता और शृंगार
बहुत से महापुरुष कविता की उपयोगिता को स्वीकार तो किसी प्रकार करते हैं, पर शृंगार-रस उनके निर्मल नेत्रों में कुछ खार सा या तेज़ तेज़ाब सा खटकता है वह शृंगार की रसीली लता को विषैली समझ कर कविता-वाटिका से एकदम जड़ से उखाड़ फेंकने पर तुले खड़े हैं। उनकी