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नाहि करब बर हर निरमोहिया
नाहि करब बर हर निरमोहिया।बित्ता भरि तन बसन न तिन्हका बघछल काँख तर रहिया॥
विद्यापति
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी
ऐसी प्रीति कहूँ नहि देखी।जसुमतिसुत वल्लभसुत जैसी सेस सहस मुख जात न लेखी॥
गोविंद स्वामी
काहू कौ बस नाहि तुम्हारी कृपा तें
स्वामी हरिदास
हम नहिं आज रहब यहि आँगन
हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई।एक त बइरि भेला बीध बिधाता दोसरे धिया कर बाप॥
विद्यापति
जिय की साध जिय ही रही री
जिय की साध जिय ही रही री।बहुरि गोपाल देखन न पाए बिलपति कुंज अहीरी॥
परमानंद दास
गुमानी घन! काहे न बरसत पानी
गुमानी घन! काहे न बरसत पानी!सूखे सरोवर उड़ि गए हंसा, कमल बेलि कुम्हलानी॥
कुंभनदास
रात भर का है डेरा
कद जाणे माटी की काया, माटी में मिल जाय।तेरा नहीं है अटल बसेरा, सवेरे जाना है॥
सैन भगत
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय।जो मूरति ब्रह्मादिक दुर्लभ सो प्रगटे हैं आय॥
परमानंद दास
लता तू अनोखे ख्याल पर्यो है
अति आसक्ति भर्यो, नहि जानत, पुहुप प्रभाव कर्यो है।‘अलिबेली अलि' तृषित न मानत, किहि रस-रंग ढर्यो है॥