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बसि सकोच-दस बदन-बस
बसि सकोच-दस बदन-बस, साँचु दिखावति बाल।सियलौं सोधति तिय तनहिं, लगनि-अगनि की ज्वाल॥
बिहारी
तुका दास तिनका रे
तुका दास तिनका रे, राम भजन नित आस।क्या बिचारे पंडित करो रे, हात पसारे आस॥
संत तुकाराम
'दया' दास हरि नाम लै
'दया' दास हरि नाम लै, या जग में ये सार।हरि भजते हरि ही भये, पायौ भेद अपार॥
दयाबाई
पीपा दास कहाबो कठिन है
पीपा दास कहाबो कठिन है, मन नहिं छांड़े मानि।सतगुरू सूँ परचौ नही, कलियुग लागौ कानि॥
संत पीपा
रावन रिपु के दास
रावन रिपु के दास तें, कायर करहिं कुचालि।खर दूषन मारीच ज्यों, नीच जाहिंगे कालि॥
तुलसीदास
दास दासि अरु सखि सखा
दास दासि अरु सखि सखा, इनमें निज रुचि एक।नातो करि सिय राम सों, सेवै भाव विवेक॥
रसिक अली
झर-सम दीजै देस-हित
झर-सम दीजै देस-हित, झर-झर जीवन-दान!रुकि-रुकि यों चरखा-सरिस, दैबौ कहा सुजान॥
दुलारेलाल भार्गव
दरसनीय सुनि देस वह
दरसनीय सुनि देस वह, जहें दुति-ही-दुति होइ।हौं बारौ हेरन गयौ, बैठ्यौ निज दुति खोइ॥
दुलारेलाल भार्गव
देह-देस लाग्यौ चढ़न
देह-देस लाग्यौ चढ़न, इत जोबन-नरनाह।पदन-चपलई उत लई, जनु दृग-दुरग पनाइ॥
दुलारेलाल भार्गव
नहिँ विवेक जेहि देस में
नहिं विवेक जेहि देस में, तहाँ न जाहु सुजान।दच्छ जहाँ के करत हैं, करिवर खर सम मान॥
दीनदयाल गिरि
ल्याई लाल निहारिए
ल्याई लाल निहारिए, यह सुकुमारि विभाति।उचके कुच कच-भार तें, लचकि-लचकि कटि जाति॥
रामसहाय दास
अधर मधुरता लेन कों
अधर मधुरता लेन कों, जात रह्यौ ललचाइ।हा लोटन मैं मन गिर्यो, उरजन चोट न खाइ॥
रामसहाय दास
चंपक केसरि आदि दै
चंपक केसरि आदि दै, तुलहिं न कौनो रंग।सोनो लोनो होत है, लगि दुलहिन के अंग॥
रामसहाय दास
काहि छला पहिराव री
काहि छला पहिराव री, हों बरजी बहु बार।जाय सही नहिं बावरी, मिहदी रंग को भार॥