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पीव घरि आवे रे

peew ghari aawe re

दादू दयाल

अन्य

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दादू दयाल

पीव घरि आवे रे

दादू दयाल

और अधिकदादू दयाल

    पीव घरि आवे रे बेदन माह्नी जांणी रे।

    बिरह संतापै कवण परि कीजै कहूँ छूँ दुखनीं कहांणी रे॥

    अंतरजांमीं नाथ माहरा, तुझ बिन हूँ सींदांणीं रे।

    मंदिर मांहरै कांइ आवै, रजनी जाइ बिहांणीं रे॥

    बाहरी बाट हौं जोइ जोइ थाकी, नैंण खडै पांणीं रे।

    दादू तुझ बिन दीन दुखी रे, तूं साथै रह्यौ छै तांणी रे॥

    मेरी पीड़ा को पहचानकर प्रिय मेरे घर आएँ तो उनसे अपनी व्यथा-कथा कहूँ। उनके अतिरिक्त किससे अपनी व्यथा कह सकती हूँ? मेरे अंतर्यामी प्रभु! आपके बिना मैं विरह में सुलग रही हूँ। आप मेरे आवास पर क्यों नहीं आते। आपकी प्रतीक्षा में रात्रि व्यतीत होती जा रही है। आपकी प्रतीक्षा करते-करते मैं थक गई हूँ। नेत्रों से निरंतर अश्रु प्रवाहित हो रहे हैं। थम नहीं पा रहे हैं। हे प्रभु! विरहिणी आपके बिना दु:खी हो रही है। लेकिन आप हैं कि उसके साथ खींचा-तानी कर रहे हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दादू समग्र (एक) (पृष्ठ 150)
    • रचनाकार : दादू दयाल
    • प्रकाशन : अमरसत्य प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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