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पुष्पवाटिका प्रसंग (एक) : रामचरितमानस

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तुलसीदास

तुलसीदास

पुष्पवाटिका प्रसंग (एक) : रामचरितमानस

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लषन सन राम हृदय गुनि॥

    मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही। मनसा बिस्ब बिजय कहँ कीन्ही॥

    अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥

    भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दृगंचल॥

    देखि सीय सोभा सुखु पावा। हृदय सराहत बचनु आवा॥

    जनु बिरंचि सब निज निपुनाई। बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई॥

    सुन्दरता कहुँ सुंदर करई। छबि गृह दीप सिखा जनु बरई॥

    सब उपमा कबि रहे जुठारी। केहि पटतरउँ बिदेह कुमारी॥

    कंकण, करधनी और पाजेब की झनकार सुनकर राम हृदय में विचारकर लक्ष्मण से कह रहे हैं−मानो कामदेव ने डंका बजाया है और विश्व को जीतने का इरादा किया है।

    ऐसा कहकर राम ने फिर उस ओर देखा। सीता के मुखरूपी चंद्रमा के लिए राम के नेत्र चकोर हो गए। सुंदर नेत्र स्थिर हो गए। मानो निमि ने सकुचाकर पलकें छोड़ दीं। (लड़की-दामाद का मिलन-प्रसंग देखना उचित जानकर महाराज जनक के पूर्वज निमि पलकों पर से उतर गए। ऐसा माना जाता है कि सबकी पलकों पर निमि का निवास है।)

    सीता की शोभा देखकर राम ने बड़ा सुख पाया। मन-ही-मन वे उसकी सराहना करते हैं, किंतु मुख से वचन नहीं निकलते। मानो ब्रह्मा ने अपनी सारी निपुणता को मूर्तिमान् कर संसार को प्रकट करके दिखा दिया है।

    यह शोभा सुंदरता को भी सुंदर करने वाली है। मानो शोभा के घर में दीप की शिखा जल रही हो। तुलसीदास कहते हैं सारी उपमाओं को तो कवियों ने जूठा कर दिया है। मैं जनक की पुत्री की उपमा किससे दूँ?

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री रामचरितमानस (पृष्ठ 147)
    • रचनाकार : तुलसी
    • प्रकाशन : लोकभारती
    • संस्करण : 2017
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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