यादें

yaden

अजीत रायज़ादा

और अधिकअजीत रायज़ादा

    पतझर का मौसम

    डूबते हुए सूरज की आख़िरी किरन

    शाम के बढ़ते हुए साए

    और

    भटकता हुआ मेरा मन।

    विगत स्मृति की

    मैली-सी चादर पर

    उभरते हैं किसी के अधर

    किसी के नयन

    कुछ मुस्कुराहटें

    कुछ आवाज़ें

    अस्पष्ट-सी।

    यादों के झरोखे से

    झाँकती है आकृति कोई अनजान

    फिर खो जाती है

    अँधेरे में जाने कहाँ

    —एक कसक-सी उठती है

    मन के किसी कोने में।

    बीते हुए का लगाव

    वर्तमान की उदासी

    और भविष्य का अनजानापन

    घूमते उठते हैं

    सब एक साथ ही

    नियति के चक्र से।

    अब मैं हूँ

    और मेरा सूनापन

    उदास-उदास-से चेहरे

    देख रहे हैं मुझे सब अपलक

    जाने क्यों

    बड़ी अजीब-अजीब-सी लगती हैं

    ये परिचित-अपरिचित नज़रें।

    विदा

    लेनी ही होगी

    क्योंकि जाना है मुझे दूर

    और

    ढल रहा है दिन

    बीते समय की याद में

    समय :

    जिसको किसी की प्रतीक्षा नहीं

    किसी से प्यार—

    पर

    मानव तो समय नहीं हो सकता

    इसीलिए

    मैं मुड़-मुड़कर

    बार-बार देखता हूँ पीछे

    शायद तुम भी

    चले रहे हो

    मुझे ढूँढ़ते हुए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हाशिए पर आदमी (पृष्ठ 33)
    • रचनाकार : अजीत रायज़ादा
    • प्रकाशन : परिमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1991

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