उन कायरों के नाम ख़त, जो धर्म-रक्षा की ख़ातिर बंदूक़ सँभाले हुए हैं
कायरो,
कितना डरते हो तुम कथित ईश्वर की बनाई दुनिया में
कथित ईश्वर के लुप्त हो जाने के भय से
तुम्हारी सोच का दायरा
एक पागल कुत्ते की रैबीज़ जितना ख़ौफ़नाक है
कायरो,
क्या तुम बता सकते हो
कि किस ईश्वर के आख्यान में डूब कर
अपनी नसों में भरते हो यह घृणा?
वैसे मेरा निजी अनुभव तो यही है
कि ईश्वर का नया नागर संस्करण
एक ध्वजा है जो घृणा सिखाता है और हत्या के लिए उकसाता है
तुम बहुसंख्यक के धर्म में धार्मिक बाना पहन कर रहते हो कायरो,
इतिहास में झूठ का पुलिंदा बाँध कर
अल्पसंख्यकों की असुरक्षा के भयभीत तर्कों पर सवार होकर
दिखावे की सहिष्णुता में आक्रामकता की मूँछ उमेठ कर
जाति में वर्चस्व के छीजते भय की सामंती आशंकाओं
और सन्निपाती इच्छाओं से लैस
तुम अँधेरे से निकलते हो
रोशनी पर हमला करने के लिए
कायरो, तुम्हारा वह ज़हरीला टैंक जो तुम्हें ईंधन उपलब्ध कराता है
बदल नहीं पाएगा दुनिया का हत्यारा पृष्ठ
क्या इतिहास से तुम कोई सबक नहीं लेते हो?
क्या तुम देखते नहीं कि दुनिया के तमाम तानाशाहों की क़ब्रें सूखी पत्तियों से ढँकी सुनसान पड़ी हैं?
सिराई गई हड्डियों को मछलियों-झींगों तक ने कुतर दिया है
और सभ्यता घूम-घाम कर, भटक-बहक कर
विचारकों के पास ही पहुँचती है आख़िरकार
इसलिए कायरो,
अपने तानाशाहों की चरण पादुकाएँ देखना बंद करो तानाशाहों के पक्ष में लिखीं चमकीली इबारतें
एक दिन अपनी चमक खो देंगी
तब तुम्हारे द्वारा की गई हत्याओं के पृष्ठ
तृण-पात की तरह उड़ेंगे तब लिखा जाएगा
कि तुमने इतिहास के एक कालखंड में
धूप के क़त्ल की वाचाल कोशिश की थी।
- रचनाकार : बसंत त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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