चरित्रहीनता : पाँच

charitrhinta ha panch

संदीप रावत

संदीप रावत

चरित्रहीनता : पाँच

संदीप रावत

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    मैं एक दिल की दिशाहीन निःशब्दता हूँ

    रात

    सियारों

    कुत्तों

    झींगुरों और सब कुछ की तह में बैठी अनजानी आवाज़ें

    मेरे गिर्द फैली

    किसी सोच याद चाह की धुँध को

    पार करती हुई

    चली जाती हैं

    और तब

    मेरे फेफड़ों में हवा की तरह

    आवाज़ें भर जाती हैं

    यहाँ

    मैं

    कभी पानियों की तरफ़ से आता हूँ

    कभी क़ब्रों की तरफ़ से

    कभी फूल कभी राख और

    कभी कोयलों में से निकलता हूँ

    कभी-कभी मुझे बुझाकर

    यहाँ

    धुएँ की एक लकीर उठती है

    मैं अपनी आँधियों संग

    क्षण भर का सब्र लेकर चलता हूँ

    ठीक इसी तरह कायनात ख़ुद को रचती है

    एक तूफ़ान मुझसे पूछता है कि कौन है वो जो यहाँ

    ख़ामोशी से तुम्हारे साथ हो सकता है?

    क्या तुम्हारे पास

    मुझ-सी कोई जीवंत ख़ामोश मौजूदगी है?

    तुम्हारे ख़याल के धुँधलाने के बाद मुझमें

    एक पहाड़ उभरता है

    एक शब्द

    एक हिमालयी पंछी की आँखें

    शाम के रंग और

    सब कुछ को अकेला करती हुई

    एक पगडंडी जो

    मुझे कहीं नहीं ले जाती

    प्रेम मेरे अनदेखे में उगी हरियाली है

    दिल एक ऐसी रौशनी है जिसमें

    खोजने को कुछ नहीं

    प्रकाश अ-रूप की अबोधता है

    तुम्हारी क़ुर्बत में

    मेरे भीतर

    सदा के लिये कहीं खो जाने के ख़्वाब

    दाख़िल होते हैं

    और उनके साथ

    पतझर की टहनियों की

    बरहन गतिहीनता और

    एक दिशाहीन

    निःशब्दता…

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप रावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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