शोक मत करना

shok mat karna

शोभा प्रभाकर

शोभा प्रभाकर

शोक मत करना

शोभा प्रभाकर

और अधिकशोभा प्रभाकर

    नई उगी पत्ती को निहार लेना,

    हाथ बढ़ा कर छू लेना।

    टहनी से गिरने से पहले,

    मुरझाते हुए फूलों को आशीष दे देना,

    शोक मत करना।

    अपने चेहरे पर उबलते हुए पानी की भाप महसूस करना,

    और देखना कैसे धीमी आँच पर उबलता पानी

    बिना छलके, उबलते-उबलते बस थम जाता है।

    शांत पानी में अपना अक्स देख लेना,

    शोक मत करना।

    दीवारों के कान होते हैं, मुँह नहीं,

    फिर भी एक ख़ाली दुपहर दीवारों को सुन लेना।

    एक भोर जल्दी उठ जाना,

    अपनी हथेलियों को ठीक बीचोंबीच चूम लेना,

    शोक मत करना।

    अगर तुम्हारे मन की सबसे निचली सतहों के भावों को

    पात्र मिल सके,

    रोशनदानों से झरती धूप को दृष्टि दे देना,

    शोक मत करना।

    पात्र ढूँढ़ने की चेष्टा तो हरगिज़ मत करना!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शोभा प्रभाकर
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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