खोई चीज़ों का शोक

khoi chizon ka shok

सविता सिंह

सविता सिंह

खोई चीज़ों का शोक

सविता सिंह

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    अपरिचित हवा कैसी यह

    झुरझुरी बदन में

    अजब रौशनी फैली है

    हरी नीली मिली कुछ इस तरह

    धरती ज्यों आसमान से

    एक लकीर-सी खिंची है तेज़धार शमशीर ज्यों

    चीरती हुई दृश्य को बीच से

    इसी पर चलकर गया होगा वह

    छोड़कर अपना सारा सामान

    मछुआरा ज्यों अपना जाल

    सफ़ेद रात उतरी होगी यहाँ से ही उस पार

    कोई समुद्र जहाँ प्रतीक्षा करता रहा होगा उसका

    रोके अपने जहाज़

    मेरे विचलन को कोई समझता है

    छाती में बसी धुकधुकी को सुन रहा है कोई

    कोई जान रहा है एक चिड़िया अपनी जान गँवाने वाली है

    तभी वह कहता है :

    देखो गया ही कहा हूँ

    कोई जाता कहीं नहीं

    हूँ पहले से अधिक तुम्हारा ही

    तुम्हारे शोक में घुला हुआ

    कल ही मिला था मित्र सुरेश सलिल से

    तुम भी तो साथ आई थीं

    हम बैठे थे पार्क में सीमेंट वाली बेंच पर

    तुम्हारा माथा पहले ही की तरह मेरी गोद में था

    मेरी अँगुलियाँ तुम्हारे बालों में

    सब कुछ भूल सकता है मनुष्य

    मगर नहीं स्पर्श

    हमारे बीच बेशक मौन था

    जो था हमारा अपना ही

    हमारी साँसें एक दूसरे में समाई हुईं

    समझतीं कहने को क्या हो सकता है

    जब लोग समझ रहे हों एक दूसरे को यूँ

    तुम्हारे भीतर एक बदहवासी थी मगर

    एक नई घबराहट

    मैंने तुम्हें कई बातें पहले से बता रखी थीं

    और यह भी

    कि यह लड़की जो आस-पास मेरे रही है जन्म से

    तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगी

    वह बस अपना नियत काम करती है

    लंबी साँवली छींटदार साड़ी में

    वह एक मासूम-सी उपस्थिति है

    देखो उसके बाल किसी नवजात शिशु की तरह हैं

    महीन मुलायम

    उसके हाथ बच्चे के हाथों की तरह

    तुम्हें क्यों भ्रम होता है इससे

    हम सदा ही तीन जने थे

    तब भी हम हमारी बेटियाँ हुईं

    मैं तुम और यह मृत्यु!

    तुम्हें जाने क्यों वह किसी डरावनी चिड़िया-सी दिखती थी

    तुम सदा उसे उड़ाने की फ़िक्र में लगी रहती थीं

    लेकिन तुम्हें तो पता ही था वह मेरे ख़ून में शामिल थी

    प्रवाहित प्राचीन किसी दर्द-सी

    मेरी हड्डियों से लगकर

    सटकर नसों से बहती थी

    उसका रंग लाल के बाद तुरंत

    कत्थई हो जाया करता था

    तुम्हीं उसे साफ़ करती थीं

    रात के अंतिम पहर अक्सर

    जब वह बहने लगती थी शरीर से बाहर

    तकिये बिस्तर पर पसरती

    जीवन की चादर पर चकत्तेदार मृत्यु!

    क्या है जो तुम्हें आज इतना अचंभित करता है

    उद्वेलित इतना भयभीत भी

    तुम्हें बताना चाहिए था हमारी बेटियों को खुलकर

    तुम उन्हें नाहक़ बचाती रहीं इस अंतरंग

    यथार्थ से

    जैसे कि सचमुच तुम उन्हें बचा सकती थीं

    तुम्हें बताना चाहिए था उन्हें इस गुप्त स्त्री के बारे में

    जो सोई रहती थी हमारे बिस्तर में

    मुँह उधर किए हुए

    वह कभी भी करवट बदल सकती थी

    नींद में कभी नहीं होती थी वह तुम जानती थीं

    तब भी नहीं जब हम संभोग कर रहे होते थे

    यात्रा साथ दूसरे नक्षत्रों की

    आज क्यों इतनी हतप्रभ

    तुम्हें पता था मेरे पास थीं प्रेम करने की ऐसी हिकमतें

    कि सारी ख़ामोशियों को ताले की तरह खोल सकता था

    पिघला सकता था किसी भी पत्थर को

    तुम्हारे लिए ही चकमा देता रहा इस स्त्री को हँस-हँसकर

    जाने क्यों तुम इतनी गंभीर रहीं उसे लेकर

    लड़ती-झगड़ती उसे कोसती

    बुलाती उसे खटकीन वेश्या बुरी औरत

    वेश्याओं की भी आख़िर गरिमा होती है

    उन्हें भी प्रेम चाहिए तुम्हें उनकी हिमायत करनी चाहिए

    उनमें भी प्रफुल्लता होती है

    हर मिजाज़ की होती हैं वे भी

    तुम्हें जानना चाहिए उन्हें

    उनकी आंतरिक दुनिया को

    उनके भीतर पड़े दुख के पत्थर को देखना चाहिए

    तुम्हें मैं कुछ बताने ही वाला था

    कि तुम ख़ामोश हो गई थीं बहरी

    तुम्हें मेरी बातें सुननी चाहिए थीं

    डरना नहीं चाहिए था उनके बदलते रंगों से कि आती थी

    कई-कई रंगों में

    वे मृत्यु की परछाइयाँ थीं

    मैं जानता था जैसे तुम भी

    कि फ़रेब का एक आलम था मेरे इर्द-गिर्द

    तुम कहती थीं बचिए इनसे

    ये डुबा देंगी आपको किसी काले जल में

    मगर मैं जानता था कि बचने का कोई तुक नहीं था

    वे चुकी थीं मृत्यु की संदेश वाहिकाएँ

    मैं इंतज़ार कर रहा था तुम्हारे हटने का

    तुमने मुझे कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से पकड़ लिया था

    तुम्हें थोड़ा ढीला छोड़ना चाहिए था मुझे

    थोड़ी सैर करने देना चाहिए था

    फिर भी मैं तुम्हारी गोद में ही जाता

    नहीं भेजता अपने से ज़रा भी दूर तुम्हें

    वैसे जाने का एक सलीक़ा भी होना चाहिए

    यह मेरा अनुबंध था मृत्यु से

    जाना शानदार होना चाहिए

    अच्छे कपड़ों में अपने बिस्तर में किताबों के बीच

    चाय पीते हुए अबीर-गुलाल से खेलती हुई अप्सराओं की

    सोहबत में

    ठीक से जाने का अनुबंध था मेरा

    वैसे ही गया भी

    सोचता हुआ अपने देश और बच्चों के भविष्य के बारे में

    छोड़कर जाना चाहता था अपना थोड़ा रक्त

    वही था मेरे पास साहस सरीखा

    उससे ही लड़ी जा सकेगी आगे की लड़ाई

    हमारी बेटियाँ लड़ेंगी

    ग़ैर बराबरियों और क्रूरताओं से

    मुझे यक़ीन है जैसे तुम पर भी

    उन्हें तुम बताना उनका पिता एक अच्छा इंसान था

    बाक़ी उन पर छोड़ देना

    वे ख़ुद-ब-ख़ुद समझ लेंगी बहुत कुछ और

    जीवन के ऐसे थपेड़े उन्हें झेलने पड़ें

    जिन्हें झेला मैंने बस इसका ख़्याल रखना

    थोड़े-से अनुशासन से बहुत कुछ सँभल सकता है

    अच्छी समझ अच्छा सलीक़ा हासिल हो सकता है

    मैं हताहत हुआ

    रहा

    दोस्तों से मात खाता हारता हुआ जीतता

    अपनी शर्तों पर ही रहा जीता

    तुम बताना बेटियों को

    वे अभी नादान हैं उन्हें ये बातें मैं नहीं समझा सका

    अपनी ही एक दुनिया में मुब्तिला हैं वे

    शोर भरे संगीत में डूबीं

    जबकि मैं जानता हूँ वे लौटेंगी एक दिन जीवन की

    लय की तरफ़

    तुम उन्हें समझाना पिता का प्रेम एक दुर्लभ वस्तु है इस

    दुनिया में

    जिसे मैंने सुरक्षित रखा कलेजे में शहद-सा उनके लिए

    मुझे मालूम है वे तुमसे नालिश करती थीं

    कि मुझमें पितृसत्तात्मक महत्वाकांक्षाएँ थीं

    उनके जीवन को मैं नियंत्रित करना चाहता था

    मगर कौन अभागा पिता नहीं चाहेगा

    उसकी बेटियाँ सुरक्षित रहें इस हिंस्र देश में

    कि वे समय से घर आएँ-जाएँ

    वैसा अब मेरा कोई आग्रह नहीं हो सकता ही मंशा

    यहाँ कोई गंध है रंग बता सकूँ जिसे

    यहाँ एक अपरिचित-सी रोशनी है

    जिसमें घुल गई है पहले वाली सारी चिपचिपाहट

    मुक्त हूँ उस खारा स्वाद से जो बना रहता था जिह्वा पर

    जिसे मैं चुभलाता रहता था

    शरीर में दौड़ने वाला वह दर्द भी नहीं जो बना रहता था

    ऊपर से नीचे तक

    जिसके बारे में ज़्यादातर तुम्हें बताता नहीं था

    जैसे उनके बारे मैं भी नहीं कभी ठीक से

    जो मुझे मिले थे मिलते थे अपनों से

    जिन्हें मैं जज़्ब करता जाता था

    मिलता अपने ख़ून में उसे और गाढ़ा करता

    अंत तक मैं रहा उद्धत उनकी मदद के लिए फ़िक्रमंद ही

    मगर दो शब्द नहीं रहे कभी उनके पास कृतज्ञता के

    षड्यंत्र तिरस्कार यही रहा भाव उनका

    खोटे सिक्कों की तरह बजती रहीं उनकी बातें

    मेरे ख़ुद्दार मस्तिष्क में

    मैंने बहुत कम परवाह की ऐसी बातों की

    बस सोचता और समझता रहा

    अपने समय को देश समाज को

    लड़ने संघर्ष करने से ही आख़िर फ़र्क़ पड़ता है चीज़ों में

    करता रहा वही

    तुम साक्षी हो मैं परवाह करता था

    तारों की असली चमक की

    नहीं गया कहीं ख़ुद को चमकाने

    मैं ख़ुशबुओं की सोहबत में था

    था बहुत पहले से ही

    मैं समझता था काँच और हीरे का फ़र्क़

    तभी विचलित हुआ नहीं

    निकला अपनी तरह लिखता कहता अपनी बातें

    सावधान करता ख़राब समय रहा है

    तुम्हें अफ़सोस नहीं होना चाहिए मेरे यूँ निकल आने का

    जो कुछ था मेरे पास था सब दे चुका था तुम्हें

    मैं ख़ाली था इस मायने में

    सारा प्रेम सारी नसीहतें तुम्हें सौंप चुका था

    तुम कह सकती हो अपनी ये बातें अब अपनी तरह से

    तुम्हें स्वतंत्र छोड़ आया हूँ इसे दूसरों के लिए भी

    हासिल करो

    और क्या कहूँ आश्वस्त करने के लिए तुम्हें

    तुम जब भी मिलना चाहो हम मिल सकते हैं इसी पार्क में

    टहलते हुए कर सकते हैं बातें

    किसी मनोरम नदी के किनारे बैठ सकते हैं

    मैं कामना करता हूँ

    तुम्हारा जीवन चमकदार हो

    त्रिलोचन के धूप भरे दिन की तरह

    जिसमें जग सुंदर दिखता है

    तुम्हें प्यार देता हूँ

    जो दिया सदा तुम्हें लिया उससे ज़्यादा मगर

    तभी जी सका यह विकट जीवन जो जिया

    तुम्हें सुनकर हैरानी होगी

    कि मैं मिलता रहा हूँ अपने कई मित्रों से

    इसी प्रेम के लिए

    मित्र उस फल की तरह होते हैं

    जिनकी वजह से मनुष्य वृक्षों तक जाते हैं

    मैंने उनको भी बताया कि मैं आता रहूँगा

    शामिल उनके संघर्षों में अब भी

    उनके साथ टहलूँगा बैठूँगा अब भी

    उन बेघर लोगों के साथ जो

    सड़कों के किनारे गुज़र-बसर करते हैं

    माँगकर लाऊँगा उनके लिए पैसे

    चाय-पानी का करूँगा इंतज़ाम अब भी

    ऐसे में यदि मिल जाए अनूप सराया

    आनंदस्वरूप त्रिनेत्र अरुण कमल

    या फिर विष्णु नागर जी

    वे तुम्हें बताएँगे

    हुई थी उनकी मुलाक़ात मुझसे सपने में

    दरअसल यह दुनिया कई रूपों वाली है

    हैं इसके कई-कई इतिहास भी जिन्हें हम यथार्थ की तरह

    समझ सकते हैं

    जैसे यह जीवन ही कई परतों वाला

    हमारे अपने कई-कई स्तर चेतना के

    देह की हैसियत कम ही रह जाती है इस धरातल पर

    हम मिल सकते हैं इसलिए एक दूसरे से यहाँ

    इसे एक भाषा की तरह समझो

    यदि समझ लिया गया इसका व्याकरण

    बहुत कम शब्दों से बन सकती हैं अनेक पंक्तियाँ

    एक कविता की हो सकती हैं कितनी ही आवृत्तियाँ

    हम कविता की हर नई बनावट में मिल सकते हैं

    सौभाग्य से हमारे पास यह हिकमत है

    यहाँ हिमोफ़िलियॉ होगी

    रक्तस्त्राव ही विचलित कर सकेगा हमें

    वह डरावनी चिड़िया ही होगी बड़े डैनों वाली

    जो तुम्हारी आत्मा में फड़फड़ाती थी

    यहाँ इन सबकी कविताएँ होंगी अपना यथार्थ लिए

    उनकी छवियाँ ख़ुद को प्रक्षेपित करतीं

    उन बातों से याद आती वह शाम टेम्स नदी के किनारे

    हम टहल रहे थे और हल्की बारिश हो रही थी

    मैंने कैमरे से तुम्हारी तस्वीर लेनी चाही

    जाने कहाँ से एक तेज़ हवा आई

    तुम्हारे छाते को ले गई उड़ाकर

    तुम दौड़ती हुई आईं और लिपट गईं मुझसे

    फिर कहा ‘छवि नहीं, प्रेम चाहिए’

    मैं कहता हूँ जितना यथार्थ इस याद में है

    और जितनी छाया

    और बीचो-बीच इसके जितनी बारिश और हवा

    और जितना अनुभव प्रेम का

    लगभग वैसे भी जान सकते हैं इस दुनिया को

    यहाँ की हवा और पानी यहाँ का

    इसकी अपनी आवाज़ है

    बेआवाज़ पुकार की तरह

    जब लगे कोई हवा तुम्हारे बदन में इस पुकार की तरह

    समझ लेना यथार्थ के इसी आयाम के संसर्ग में हो

    इसी तरह हम मिल सकते हैं अक्सर पार्क के बेंच पर

    जैसे हो घर में सोफ़े पर बिस्तर में इत्मीनान से बातें करते

    दुनिया जहान की

    यदि ऐसे में तुम्हें किसी नदी का नाम बताया जाए

    शक करना उसे याद रखना

    वह नदी होगी कहीं कहीं

    चीज़ें खोती रहती हैं उनका शोक करो

    वे मिलती हैं जैसे कोई सिक्का गरम कोट की जेब में

    रखा गया पिछली ठंड में

    अचानक दिख गई कोई नदी या फिर

    उसकी याद

    या फिर जैसे पवन पानी

    इसकी कोई झलक कोई छवि

    इन सबमें उसका एक किनारा होगा

    जहाँ इंतज़ार करेगा एक कवि

    अपनी कविता का

    फ़िलहाल हम मिल सकते हैं हमारी पहली मुलाक़ात की याद में

    यदि तुम्हें नहीं मिलती है अभी यह नदी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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