साइबर कैफ़े में तिब्बती लड़की

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प्रदीप सैनी

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साइबर कैफ़े में तिब्बती लड़की

प्रदीप सैनी

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    वह आती है यहाँ बिला नागा

    करती है चैट लिखती है ई-मेल कई

    एक अलग दुनिया है उसके पास

    होती है वह जिससे रूबरू

    किसी लापता धुन पर

    करती है घंटों रियाज़

    मुश्किल ही है मगर यहाँ से बाहर

    उसे सुन पाना एक ख़ामोशी है

    जो उसकी आवाज़ में शरणार्थी है

    कौन हैं वे

    जिनसे इतना बतियाती है यहाँ

    कि लगता है सुन पाते हैं वे उसे

    साहस कर पूछ बैठता हूँ

    चाभी-सी लगती है उसे मेरी उत्सुकता

    खुलता है एक वर्जित द्वार

    जिसके भीतर अपने लिए मिट्टी तलाशते

    दुनिया भर में बिखरे उसके दोस्त हैं

    जो तिब्बती में बोलते हैं,

    मगर तिब्बत नहीं बोलते

    बातों ही बातों में वह बताती है

    इन दोस्तों की बदौलत

    उसने घूमे हैं कई देश

    नाम जिनके वह गिनाती है

    मैं चाहता हूँ पूछना

    उसने घूमा है क्या कभी तिब्बत

    या कभी तिब्बत ही गया हो घूमने

    उसके स्वप्न में कभी

    मगर पूछ नहीं पाता

    क्या जानती है वह

    मिची-मिची-सी उसकी आँखों के अलावा

    नक़्शे में दुनिया के कहाँ है तिब्बत।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप सैनी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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